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Sunday, 7 February 2021

सृजन


 सृजन


बादलों पर सज उठे लो

रंग धनुषी छाप छपने।


झंझवातों में उलझता 

पांख बांधे मन भटकता

बल लगा के तोड़ बंधन

मोह धागों में अटकता

क्लांत तन बिखरा पड़ा है

बुन रही है रात सपने।।


जब अधूरी आस टूटे

मन सुकोमल भी तड़पता

स्वप्न भीती चित्र जैसा

अधखुली पलकों मचलता

कामना उपधान डाले

लग रही प्रभु नाम जपने।


झांझरे मन की झनकती

मौन नीरव तोड़ती है

तार टूटे थे कभी वो

साधना से जोड़ती है

गीत लिखती लेखनी फिर

धुन पुकारे गीत अपने।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

23 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी ।।
      रचना सार्थक हुई।
      सिकंदर।

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  2. बहुत बढ़िया..

    सादर प्रणाम

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    1. ढेर सा स्नेह आभार आपका।
      स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  3. वासन्ती परिवेश पर रचा सुन्दर नवगीत।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय,रचना को सार्थकता मिली और लेखन को नव उर्जा।
      सादर‌

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  4. बहुत बहुत सुन्दर

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका गगन जी ।
      रचना को सार्थकता मिली।
      सादर।

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  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. ढेर सा स्नेह आभार आपका कामिनी जी।
      रचना को चर्चा मंच पर रखने के लिए हृदय तल से आभार।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  7. वाह!कुसुम जी ,सुंदर सृजन ।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार शुभा जी लेखन को उर्जा मिली आपकी प्रतिक्रिया से ।
      ढेर सा स्नेह।

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  8. मन मोहती, प्रकृति का मनोहारी चित्रण करती सुन्दर कृति..

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      उर्जा देती प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  9. बहुत सुंदर। बहुत बढ़िया। आपको शुभकामनाएँ। सादर।

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    1. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      बहुत बहुत आभार आपका ।
      सादर ।

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  10. वाह!गज़ब का सृजन दी।
    सादर

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  11. बहुत सुंदर

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    1. बहुत सा आभार आपका।
      रचना को सहज प्रवाह मिला।
      सादर।

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    2. सस्नेह आभार अनिता आपका उत्साहवर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  12. पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    मैं उपस्थित रहूंगी।
    सादर।

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  13. सहज कल्पनाओं में उमड़ती रचना ... बहुत भावपूर्ण ...

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