असर अब गहरा होगा
तारों ने बिसात उठा ली, असर अब गहरा होगा ।
चांद सो गया जाके,अंधेरों का अब पहरा होगा ।
फक़त खारा पन न देख, अज़ाबे असीर होगा।
मुसलसल बह गया तो, समन्दर लहरा होगा ।
दिन ढलते ही आंचल आसमां का सुर्खरू होगा।
रात का सागर लहराया न जाने कब सवेरा होगा।
छुपा है पर्दो में कितने, जाने क्या राज़ गहरा होगा।
अब्र के छंटते ही बेनकाब, चांद का चेहरा होगा ।
साये दिखने लगे चिनारों पे, जानें अब क्या होगा।
मुल्कों के तनाव से, चनाब का पानी ठहरा होगा ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका मैं जरूर मौजूद रहूंगी।
Deleteउम्दा ग़ज़ल, अच्छे अशआर।
ReplyDeleteहृदय तल से आभार आदरणीय।
Deleteआपकी लेखनी का यह रूप भी अलहदा है । बेहद खूबसूरत । आभार ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
सदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह।
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, उत्साह वर्धन करती शुभकामनाएं ।
Deleteसादर।
बेहद खूबसूरत रचना सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी ।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
सस्नेह।
बहुत खूब !! लाज़वाब ग़ज़ल..सभी अशआर अत्यंत सुन्दर ।
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया सदा ही लेखन का सम्मान बढ़ाती है।
Deleteस्नेहिल आभार आपका मीना जी।
सस्नेह।
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत खूब कुसुम जी.. उम्दा शेरों से भरी ग़ज़ल..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
Deleteउत्साहवर्धन के लिए हृदय तल से आभार।
सस्नेह।
बहुत खूबसूरत गजल।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसादर।
छुपा है पर्दो में कितने, जाने क्या राज़ गहरा होगा।
ReplyDeleteअब्र के छंटते ही बेनकाब, चांद का चेहरा होगा ।
वाह , ग़ज़ल का हर शेर मुकम्मल । खूबसूरत ग़ज़ल
सराहना के लिए हृदय तल से आभार संगीता जी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
असर अब गहरा होगा।
ReplyDeleteवाकई असर अब गहरा होगा, बहुत खूब लिखा है आपने।
👌👌👌👌👌
बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
छुपा है पर्दो में कितने, जाने क्या राज़ गहरा होगा।
ReplyDeleteअब्र के छंटते ही बेनकाब, चांद का चेहरा होगा ।
बहुत खूब कुसुम जी,सादर नमन
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
ReplyDeleteसस्नेह।
जी बहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteसादर।
बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा में स्थान देने के लिए।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
बहुत खूबसूरत, शानदार गजल, बधाई हो कुसुम जी
ReplyDeleteसाये दिखने लगे चिनारों पे, जानें अब क्या होगा।
ReplyDeleteमुल्कों के तनाव से, चनाब का पानी ठहरा होगा
बहुत सुंदर शेरों से सजी रचना प्रिय कुसुम बहन।आपकी लेखनी कविता और ग़ज़ल दोनों पर अधिकार रखती है।
सस्नेह शुभकामनाये❤❤🌹🌹🙏🙏