Sunday, 21 February 2021

दैदिप्य


 दैदिप्य


व्याल के हर बंध में भी 

है महकता प्रज्ञ चंदन 

और घिसता पत्थरों पर 

भाल चढ़ता है निरंजन।


उर समेटे यातनाएं 

होंठ सौम्या रेख बिखरी 

ताप सहकर धूप गहरी 

स्वर्ण जैसे और निखरी 

यूँ हथेली रोक लेती 

चूड़ियों का मौन क्रंदन।।


विश्व की हर योजना में 

तथ्य वांछित है निहित से 

औ प्रकृति अनुमोद करती 

धारणा होती विहित से 

काल जब करवट बदलता 

हास करता घोर स्पंदन।।


भाल पर इतिहास के भी 

कृष्ण सी बहु छाप होती 

बुद्धि जीवी बांचते हैं 

सभ्यताएं कोढ़ ढ़ोती 

और बदले रूप में भी 

कौन बनता दुख निकंदन।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

41 comments:

  1. वाह . सुन्दर गीत भाषा कमाल है .

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    1. सादर आभार आपका स्नेह मिला,रचना गौरांन्वित हुई।
      सादर।
      ब्लाग पर सदा आपका इंतजार रहेगा।

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  2. बहुत सुन्दर और भावप्रवण गीत।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  3. भाल पर इतिहास के भी

    कृष्ण सी बहु छाप होती

    बुद्धि जीवी बांचते हैं

    सभ्यताएं कोढ़ ढ़ोती

    और बदले रूप में भी

    कौन बनता दुख निकंदन।।.क्या खूब रचा है अपने ..अर्थपूर्ण रचना..

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी सक्रिय टिप्पणी से रचना गतिमान हुई।
      सस्नेह।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. पाँच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
      में मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  6. कविता के चारों स्तंभ अलग अलग मनोभावनाओं को इंगित करते हुए एक निष्कर्ष को प्राप्त हो जाते है चमक बिखेरते हुए..बहुत सुंदर रचना

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    1. आपकी विहंगम दृष्टि से रचना के भाव और भी मुखरित हुए।
      बहुत बहुत सा स्नेह आभार ।
      सस्नेह।

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  7. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
      सादर।

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  8. वाह! कमाल की अभिव्यंजना!!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी, आपकी सराहना से रचना के काव्यगत भावों को संबल मिला।
      सादर।

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  9. सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  10. प्रशंसा के लिए शब्द न्यून प्रतीत हो रहे हैं कुसुम जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      कभी कभी शब्दों की न्यूनता बहुत कुछ कहज्ञदेती है।
      पुनः आभार, उत्साह वर्धन के लिए।
      सादर।

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  11. बहुत-बहुत मधुर शब्द और भाव
    झंकृत हुए मन की वीणा के तार

    बधाई और धन्यवाद ! सुबह सुरीली हो गई.

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    1. आपके आने भर से झंकार गूंजने लगती है नूपूरं जी।
      सदा स्नेह बनाए रखें।
      सस्नेह आभार आपका।

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  12. विश्व की हर योजना में
    तथ्य वांछित है निहित से
    औ प्रकृति अनुमोद करती
    धारणा होती विहित से
    काल जब करवट बदलता
    हास करता घोर स्पंदन।।

    शब्द-शब्द हृदयग्राही... सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई आदरणीया 🙏

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    1. बहुत बहुत आभार आपका वर्षा जी।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया रचना का उत्कर्ष है।
      सस्नेह।

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  13. भाल पर इतिहास के भी
    कृष्ण सी बहु छाप होती
    बुद्धि जीवी बांचते हैं
    सभ्यताएं कोढ़ ढ़ोती

    गहन, गंभीर, यथार्थवादी रचना...🌹🙏🌹

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    1. रचना में निहित भावों पर गहन दृष्टि रचनाकार को आत्मतुष्टि देता है ।
      बहुत बहुत स्नेह आभार आपका शरद जी ।
      सस्नेह।

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  14. विश्व की हर योजना में

    तथ्य वांछित है निहित से

    औ प्रकृति अनुमोद करती

    धारणा होती विहित से

    काल जब करवट बदलता

    हास करता घोर स्पंदन।।----बहुत बधाई

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करतीं प्रतिक्रिया।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  15. वाह!लाजवाब सृजन।
    सादर

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    1. सस्नेह आभार प्रिय बहना।

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  16. उच्च स्तरीय रचना।
    अद्भुत शब्द सामंजस्य।
    सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई और लेखन को उर्जा मिली।
      सस्नेह।

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  17. आपकी हर रचना मुग्ध करती है । हर बंध अद्भुत । गहन भाव लिए सशक्त सृजन ।

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    1. आप जैसे प्रबुद्ध साथी और पाठकों की मोहक टिप्पणियां रचना को और भी सरस कर देते है मीना जी।
      सस्नेह आभार आपका।

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  18. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
    चर्चा में हाजिर रहूंगी ।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार।
    सस्नेह।

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  19. कमाल की रचना , शब्दों का इस्तेमाल लाजवाब , ब्लॉग पर आने के लिए धन्यबाद आपका , टिप्पणी बहुत ही सुंदर है, बहुत बहुत धन्यबाद

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका ज्योति जी।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      आपके ब्लॉग पर आकर आपको पढ़ना सुखद अहसास है।
      ढेर सा आभार।
      यहां ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  20. कथ्य एवं शिल्प का सौंदर्य माधुर्य को स्वत:निस्सृत कर रहा है । बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई ।

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    1. आपकी मोहक प्रतिक्रिया ने रचना को नव दिशा प्रदान की है अमृता जी।
      सस्नेह आभार।

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  21. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति 👌👌👌

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    1. हृदय से आभार आपका सखी। सस्नेह।

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