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Sunday, 30 October 2022

कविता का ह्रास


 कविता का ह्रास


शब्द आड़म्बर फसी सी

लेखनी भी है बिलखती।


कौन करता शुद्ध चिंतन

भाव का बस छोंक डाला

सौ तरह पकवान में भी

बिन नमक भाजी मसाला

व्याकरण का देख क्रंदन

आज फिर कविता सिसकती।।


रूप भाषा का अरूपा

स्वर्ण में कंकर चुने है

हीर जैसी है चमक पर

प्रज्ञ पढ़ माथा धुने है

काव्य का अब नाम बिगड़ा

विज्ञ की आत्मा तड़पती।।


स्वांत सुख की बात कह दो

या यथार्थी लेख उत्तम

है सभी कुछ मान्य लेकिन

काव्य का भी भाव सत्तम

लक्षणा सँग व्यंजना हो

उच्च अभिधा भी पनपती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 01 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका यशोदा जी ।
      सादर सस्नेह।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-11-22} को "दीप जलते रहे"(चर्चा अंक-4598) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका कामिनी जी।
      सस्नेह।

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी।
      सादर।

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  5. स्वांत सुख की बात कह दो
    या यथार्थी लेख उत्तम
    है सभी कुछ मान्य लेकिन
    काव्य का भी भाव सत्तम
    लक्षणा सँग व्यंजना हो
    उच्च अभिधा भी पनपती।।
    अत्यंत सुन्दर सृजन कुसुम जी!

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    1. आपकी रचना पर गहन दृष्टि अभिभूत करती है प्रिय मीना जी।
      सस्नेह आभार आपका।

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  6. Replies
    1. सस्नेह आभार आपका संधु जी ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह सादर।

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  7. काव्य के सच्चे स्वरूप का दर्शन कराती सुंदर रचना

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई अनिता जी।
      सस्नेह आभार आपका।

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