कविता का ह्रास
शब्द आड़म्बर फसी सी
लेखनी भी है बिलखती।
कौन करता शुद्ध चिंतन
भाव का बस छोंक डाला
सौ तरह पकवान में भी
बिन नमक भाजी मसाला
व्याकरण का देख क्रंदन
आज फिर कविता सिसकती।।
रूप भाषा का अरूपा
स्वर्ण में कंकर चुने है
हीर जैसी है चमक पर
प्रज्ञ पढ़ माथा धुने है
काव्य का अब नाम बिगड़ा
विज्ञ की आत्मा तड़पती।।
स्वांत सुख की बात कह दो
या यथार्थी लेख उत्तम
है सभी कुछ मान्य लेकिन
काव्य का भी भाव सत्तम
लक्षणा सँग व्यंजना हो
उच्च अभिधा भी पनपती।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 01 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हृदय से आभार आपका यशोदा जी ।
Deleteसादर सस्नेह।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-11-22} को "दीप जलते रहे"(चर्चा अंक-4598) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हृदय से आभार आपका कामिनी जी।
Deleteसस्नेह।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका संदीप जी।
Deleteसादर।
स्वांत सुख की बात कह दो
ReplyDeleteया यथार्थी लेख उत्तम
है सभी कुछ मान्य लेकिन
काव्य का भी भाव सत्तम
लक्षणा सँग व्यंजना हो
उच्च अभिधा भी पनपती।।
अत्यंत सुन्दर सृजन कुसुम जी!
आपकी रचना पर गहन दृष्टि अभिभूत करती है प्रिय मीना जी।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
सुन्दर
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका संधु जी ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
Deleteसस्नेह सादर।
काव्य के सच्चे स्वरूप का दर्शन कराती सुंदर रचना
ReplyDeleteसार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई अनिता जी।
Deleteसस्नेह आभार आपका।