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Tuesday, 4 October 2022

प्रारब्ध या व्यवस्था


 प्रारब्ध या व्यवस्था

 

रेत की आँधी चले तो

कौन कर्मठ आ बुहारे

भाग्य का पलड़ा झुके तो

कौन बिगड़ी को सुधारे।।


पैर नंगे भूख दौड़े

पाँव में छाले पड़ें हैं

दैत्य कुछ भेरुंड खोटे

पंथ रोके से खड़ें हैं

घोर विपदा सिंधु गहरा

पार शिव ही अब उतारे।।


अन्न का टोटा सदा ही

हाथ में कौड़ी न धेला

अल्प हैं हर एक साधन

हाय ये जीवन दुहेला

अग्र खाई कूप पीछे

पार्श्व से दुर्दिन पुकारे।।


दीन के दाता बने जो

रोटियाँ निज स्वार्थ सेके

भूख का व्यापार करते

 पुण्य का बस नाम लेके

राख होती मान्यता को

आज कोई क्यों दुलारे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

21 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 अक्टूबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम

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    1. हृदय से आभार आपका।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  2. Replies
    1. सादर आभार आपका आदरणीय।

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  3. दीन के दाता बने जो
    रोटियाँ निज स्वार्थ सेके
    भूख का व्यापार करते
    पुण्य का बस नाम लेके
    कटु सत्य को उकेरती अप्रतिम रचना ।

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका मीना जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  4. राख होती मान्यता को
    आज कोई क्यों दुलारे

    बहुत सुन्दर रचना

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  5. अंतिम पंक्‍ति...सारा रस उड़ेल गई कुसुम जी, महादेवी वर्मा के वाक्‍य विन्‍यास में देखी थी ऐसी तारतम्‍यता..अद्भुत ही कहा कि-
    ''राख होती मान्यता को,आज कोई क्यों दुलारे।।'' संवेदना को भी पार कर जाती हुई रचना

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    1. आपकी भाव प्रवण प्रतिक्रिया सदा मेरे लेखन को सुधा तत्व से पूरित करती है अलकनंदा जी।
      सस्नेह आभार आपका सुंदर मनभावन टिप्पणी के लिए।
      सस्नेह।

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  6. बहुत ही उम्दा भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका मनोज जी।
      सादर।

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    2. हृदय से आभार आपका मनोज जी।
      सादर।

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  7. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका।
      रचना ऊर्जावान हुई ।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  8. यथार्थ पर अति भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  9. Replies
    1. हृदय से आभार आपका सरला जी।
      रचना प्राणवान हुई आपकी प्रतिक्रिया से।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  10. दीन के दाता बने जो

    रोटियाँ निज स्वार्थ सेके

    भूख का व्यापार करते

    पुण्य का बस नाम लेके

    राख होती मान्यता को

    आज कोई क्यों दुलारे।।
    पुण्य के नाम से भूख का व्यापार
    वाह!!!
    बहुत सटीक यथार्थ उकेरता लाजवाब नवगीत ।

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  11. गहन विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना को नये आयाम मिले सुधा जी बहुत बहुत आभार आपका।
    सस्नेह।

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