1212 212 122 1212 212 122.
सुधार कैसा
रहे गरीबी सदा बिलखती वहाँ व्यवस्था सुधार कैसा।
नहीं करेंगे कभी नियोजित उन्हें मिला है प्रभार कैसा।।
विवेक जिसका रहे भ्रमित सा प्रशांत मन बस दिखा रहा है।
भरा हुआ द्वेष जिस हृदय में अरे कहो वो उदार कैसा।।
घड़ी घड़ी जो दिखा रहें हैं कपट गठन की मृषा लिखावट।
जहाँ बही बस बता रही हो नहीं सफल ये सुधार कैसा।।
परम हितैषी पुरुष जगत में परोपकारी सदा रहें हैं।
करें सभी का भला यहाँ जो नहीं डरें हो विकार कैसा।।
न कर सके जो मनन बिषय पर परोसते अधपकी समझ को।
इधर उधर से उठा लिया है पका नहीं वह विचार कैसा।
नदी मचलती चले लहरती कभी सरल और तेज कभी।
बहाव को जो न रोक पाए भला कहो तो कगार कैसा।।
न हित भलाई करे किसीकी दया क्षमा भी नहीं हृदय में।।
गिरे स्वयं संघ भी प्रताड़ित गिरा हुआ वह अगार कैसा ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२४-१० -२०२२ ) को 'दीपावली-पंच पर्वों की शुभकामनाएँ'(चर्चा अंक-४५९०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका।
Deleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय कुसुम बहन।सभी बन्ध अपनी कहानी आप कहते हैं।सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार। दीपोत्सव पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🎊🎊🎉🎉🎀🎀🎁🎁🌺🌺♥️🌹🙏
ReplyDeleteआपकी मनमोहक टिप्पणी से सृजन को नव उर्जा मिली रेणु बहन।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
वाह 👍
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteअद्भुत सृजन । हर पदबंध अपने आप में सटीक व परिपूर्ण । दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ कुसुम जी 🙏🙏
ReplyDeleteआपकी भाव प्रवण टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ मीना जी ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।