भव प्रीता
बन के उतरो विभा धरा पर
पथ पर हाथ बिछा देंगे ।
कोमल कली विश्व प्रांगण की
फूलों का श्रृंगार धरेंगे।
शक्ति रूप धरलो मातंगी
सूर्य ताप लेकर आना
सुप्त पड़े लद्धड़ जीवन में
नव भोर नव क्रांति लाना
कभी पैर छाले भी सिसके
अब न ऐसे घाव करेंगें।
चांद सूर्य की ज्योत तुम्ही हो
तुम हो वीरों की थाती
जड़ जंगम आधार तुम्हारे
सभी रूप में मन भाती
भवप्रीता बन के आ जाना
अब न कभी गात दहेंगे।।
थके हुए वासर के जैसा
बिगड़ा धरा का हाल है
जलती चिताएँ ज्वाल मुख सी
संकाल का जंजाल है
यौवन वसुंधरा का उजड़ा
तुम आवो बाग लहेंगे।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 28 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.10.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4594 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता।
Deleteवांछनीय प्रार्थना
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका अनिता जी।
Deleteसस्नेह।
सुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका वीणा जी।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका संगीता जी ।
Deleteसादर।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका भारती जी ।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय कुसुम बहन।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार आपका रेणु बहन।
Deleteसस्नेह।
अनुपम सृजन
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका मनोज जी।
ReplyDeleteसादर।