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Wednesday, 26 October 2022

भवप्रीता


 भव प्रीता


बन के उतरो विभा धरा पर

पथ पर हाथ बिछा देंगे  ।

कोमल कली विश्व प्रांगण की 

फूलों का श्रृंगार धरेंगे।


शक्ति रूप धरलो मातंगी

सूर्य ताप लेकर आना

सुप्त पड़े लद्धड़ जीवन में

नव भोर नव  क्रांति लाना

कभी पैर छाले भी सिसके 

अब न ऐसे घाव करेंगें।


चांद सूर्य की ज्योत तुम्ही हो

तुम हो वीरों की थाती

जड़ जंगम आधार तुम्हारे

सभी रूप में मन भाती

भवप्रीता बन के आ जाना

अब न कभी गात दहेंगे।।


थके हुए वासर के जैसा 

बिगड़ा धरा का हाल है

जलती चिताएँ ज्वाल मुख सी

संकाल का जंजाल है

यौवन वसुंधरा का उजड़ा

तुम आवो बाग लहेंगे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 28 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.10.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4594 में दिया जाएगा
    धन्यवाद
    दिलबाग

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  3. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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    1. सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता।

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  4. वांछनीय प्रार्थना

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    1. हृदय से आभार आपका अनिता जी।
      सस्नेह।

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  5. Replies
    1. हृदय से आभार आपका वीणा जी।
      सस्नेह।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी ।
      सादर।

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  7. बेहतरीन रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका भारती जी ।
      सस्नेह।

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  8. सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय कुसुम बहन।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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    1. ढेर सा स्नेह आभार आपका रेणु बहन।
      सस्नेह।

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  9. हृदय से आभार आपका मनोज जी।
    सादर।

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