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Tuesday, 31 May 2022

तेजल सवैया के दो सृजन।


 तेजल सवैया के दो  सृजन।

२ ११२ ११२ ११२ ११, 

२ ११२ ११२ ११२ २ ।


पनिहारिन


वो झँझरी झनकी झन झन्नक,

पायल बोल रसी स्वर बोले।

नार सजी सज के चलदी वह,

गागर सुंदर ले सिर तोले ।

घाट चढ़ी जल में रखती पग,

हाथ उठा निज घूंघट खोले।

ओह मनोरम रूप उजागर,

देख मिलिंद छली मुख डोले।।


नार नवेली

मारुत जो फहरी चलती अब,

वो मदरी मदरी मन भाई।

आज कई सपने दिखते नव,

आँख झुकी बदरी घिर आई।

आँचल लाल उड़ा सिर से सर,

लो लट श्यामल सी लहराई।

सुंदर रूप दिखे सलिला जल,

मंजुल सी छवि वो सकुचाई।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

17 comments:

  1. अति सुमधुर सृजन, लाजवाब सवइया |

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    1. हृदय से आभार आपका।
      सराहना संपन्न प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  2. वाह ! बहुत ही सुंदर लयात्मकता लिए हुए सवैया छंद ।
    सादर बधाई ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      सवैया अपनी लय की विशेष अहमियत रखते हैं।
      लय सन गई तो लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  3. Replies
    1. जी आपका हृदय से आभार।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।

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  4. भावपूर्ण सृजन

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  5. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आलोक जी।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  6. सुन्दर ! अति सुन्दर !

    होठों पर सरसराहट सी आ गई ,
    और चेहरा प्रफुलित हो उठा । ।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      रचना को आशीर्वाद मिला।
      सादर।

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  7. आज कई सपने दिखते नव,
    आँख झुकी बदरी घिर आई।
    आँचल लाल उड़ा सिर से सर,
    लो लट श्यामल सी लहराई।
    अद्भुत ,अप्रतिम,अति सुन्दर । मनमोहक सृजन ।

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    1. आपकी अद्भुत प्रतिक्रिया से रचना को नव उर्जा मिली मीना जी, सदा स्नेह बनाए रखें।
      सस्नेह आभार आपका

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  8. वाह क्‍या बात है नार नवेली की...गजब लिखदिया कुसुम जी कि ''मारुत जो फहरी चलती अब,

    वो मदरी मदरी मन भाई।

    आज कई सपने दिखते नव,

    आँख झुकी बदरी घिर आई।'' मगर यहां तो न बदरी आई है अभी न ही आसार हैं सेा आपकी लिखी ये पंक्‍तियां हमें मुंह चिढ़ा रही हैं....परंतु शब्‍द क्‍या जानें कि कौन चिढ़ रहा है और कौन खुश है सो आपके लिखे को कहना ही होगा क्‍याखूब लिखा... बहुत खूब लिखा

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  9. अहा! अलकनंदा जी आपने तो अकलनंदा ही उतार दी आज काव्य धरा पर।
    उपालंभ भी प्रशंसा भी और ढेर सा स्नेह भी।
    हृदय से आभार और ढेर ढेर सा स्नेह।
    सस्नेह।

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  10. वाह!!!
    बार बार गुनगुनाने लायक लाजवाब तेजल सवैया....
    साधुवाद कुसुम जी सारी विधाओं में पारंगत हैं आप ।
    कोटिश नमन 🙏🙏

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