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Thursday, 19 May 2022

फिर एक गीत लिख तू


 फिर एक गीत लिख तू


फिर एक गीत लिख तू

अर्पित मन मेरे

सूरज को ठंडक दे 

कल्पित मन मेरे।


तन्वंगी सरिता रोती

नीर बहेगा क्या

वसुधा का आँचल जर्जर 

बचा रहेगा क्या

तर्पित मन मेरे।।


फिर एक गीत लिख तू।


हाहाकार मचा भारी

चैन नहीं थोड़ा

दुख के बादल गहरे

सुख ने मुख मोड़ा

अल्पित मन मेरे।।


फिर एक गीत लिख तू।


घोर प्रभंजन दुखदाई

काल घड़ी लगती

चार दिशा में वात युद्ध

जल रही जगती 

जल्पित मन मेरे।।


फिर एक गीत लिख तू।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'



अर्पित=अर्पण किया हुआ

कल्पित=कल्पना किया हुआ

तर्पित=तर्पण किया हुआ

अल्पित =उपेक्षित

जल्पित=मिथ्या

27 comments:

  1. सामयिक स्थिति का जीवंत चित्र। बधाई और आभार।

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२०-०५-२०२२ ) को
    'कुछ अनकहा सा'(चर्चा अंक-४४३६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. सादर आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      उपस्थिति देकर आई हूँ।
      सस्नेह।

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  3. आपका आह्वान सार्थक हो।

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      शुभ भावों की सुंदर शुभकामनाएं।
      सादर।

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  4. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  5. हाय ग्रीष्म ऋतु का प्रकोप !
    नदी, तालाब, कुँए ही क्या, नेताओं की आँखों का पानी तक सूख गया है.

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।

      नेताओं की आँखों का पानी तो कभी का सूख गया बेचारे ग्रीष्म को इल्ज़ाम न दें।
      सादर।

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  6. आशा का संचार करता सुंदर गीत
    कमाल के बिंम्ब

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    1. रचना के भावों पर मंथन के लिए हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  7. वाह!कुसुम जी ,बहुत खूब!

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    1. सस्नेह आभार आपका शुभा जी।
      आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  8. सूरज को तो भला कौन ठंडक दे सकता है , लेकिन धरती पर थोड़ी ठंडक रहे इसके लिए प्रयास किये जा सकते हैं । सुंदर और प्रेरक रचना ।

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    1. जी भावों की थाह भी यही है कि कुछ ऐसा प्रयास करूं कि ताप कुछ कम हो धरणी से।
      आपकी गहन दृष्टि को नमन।
      सादर आभार।

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  9. पुरा जीवन दो चीजों पर टिका है - एक साँस दुसरा आश ।
    साँस बिन मृत होता है इन्सान और बिन आश मृत समान ।

    सुंदर ! अति सुन्दर सृजन !

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    1. आपकी सार्थक दर्शन रचना को नये आयाम दे रहा है ।
      सादर आभार आपका।

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  10. प्रिय दी,
    भावों की व्याकुलता मन तक पहुँच रही।
    बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
    प्रणाम दी
    सादर।

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    1. सस्नेह आभार आपका श्वेता भाव आलोड़ित कर दें तो सृजन सार्थक होता है बहना।
      सुंदर भावपूर्ण प्रतिक्रिया से लेखन को नई ऊर्जा मिली।
      सस्नेह।

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  11. बहुत सुन्दर !! प्रभावशाली भावाभिव्यक्ति ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
      रचना को स्नेह देती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  12. हाहाकार मचा भारी
    चैन नहीं थोड़ा
    दुख के बादल गहरे
    सुख ने मुख मोड़ा
    अल्पित मन मेरे।।//5
    बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय कुसुम बहन।शायद ये मार्मिक गीत सुनकर ही सृष्टि का ताप तनिक कम हो//

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    1. सस्नेह आभार आपका रेणु बहन, गीत सुनकर तो क्या रेणु बहन पर्यावरण के लिए कुछ करें तो यह जरूर होगा।
      आपका स्नेहिल आभार हृदय से।

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  13. आर्त्त भाव से हृदय भर रहा है। अति सुन्दर कृति।

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    1. जी रचना अगर पाठक को हृदय को द्रवित करती है तो रचनाकार स्वयं को धन्य मानता है।
      हृदय से बहुत बहुत सारा आभार आपका।
      सादर सस्नेह।

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  14. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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