फिर एक गीत लिख तू
फिर एक गीत लिख तू
अर्पित मन मेरे
सूरज को ठंडक दे
कल्पित मन मेरे।
तन्वंगी सरिता रोती
नीर बहेगा क्या
वसुधा का आँचल जर्जर
बचा रहेगा क्या
तर्पित मन मेरे।।
फिर एक गीत लिख तू।
हाहाकार मचा भारी
चैन नहीं थोड़ा
दुख के बादल गहरे
सुख ने मुख मोड़ा
अल्पित मन मेरे।।
फिर एक गीत लिख तू।
घोर प्रभंजन दुखदाई
काल घड़ी लगती
चार दिशा में वात युद्ध
जल रही जगती
जल्पित मन मेरे।।
फिर एक गीत लिख तू।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
अर्पित=अर्पण किया हुआ
कल्पित=कल्पना किया हुआ
तर्पित=तर्पण किया हुआ
अल्पित =उपेक्षित
जल्पित=मिथ्या
सामयिक स्थिति का जीवंत चित्र। बधाई और आभार।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२०-०५-२०२२ ) को
'कुछ अनकहा सा'(चर्चा अंक-४४३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteउपस्थिति देकर आई हूँ।
सस्नेह।
आपका आह्वान सार्थक हो।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteशुभ भावों की सुंदर शुभकामनाएं।
सादर।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteरचना सार्थक हुई।
सादर।
हाय ग्रीष्म ऋतु का प्रकोप !
ReplyDeleteनदी, तालाब, कुँए ही क्या, नेताओं की आँखों का पानी तक सूख गया है.
हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteनेताओं की आँखों का पानी तो कभी का सूख गया बेचारे ग्रीष्म को इल्ज़ाम न दें।
सादर।
आशा का संचार करता सुंदर गीत
ReplyDeleteकमाल के बिंम्ब
रचना के भावों पर मंथन के लिए हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर।
वाह!कुसुम जी ,बहुत खूब!
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका शुभा जी।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
सस्नेह।
सूरज को तो भला कौन ठंडक दे सकता है , लेकिन धरती पर थोड़ी ठंडक रहे इसके लिए प्रयास किये जा सकते हैं । सुंदर और प्रेरक रचना ।
ReplyDeleteजी भावों की थाह भी यही है कि कुछ ऐसा प्रयास करूं कि ताप कुछ कम हो धरणी से।
Deleteआपकी गहन दृष्टि को नमन।
सादर आभार।
पुरा जीवन दो चीजों पर टिका है - एक साँस दुसरा आश ।
ReplyDeleteसाँस बिन मृत होता है इन्सान और बिन आश मृत समान ।
सुंदर ! अति सुन्दर सृजन !
आपकी सार्थक दर्शन रचना को नये आयाम दे रहा है ।
Deleteसादर आभार आपका।
प्रिय दी,
ReplyDeleteभावों की व्याकुलता मन तक पहुँच रही।
बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
प्रणाम दी
सादर।
सस्नेह आभार आपका श्वेता भाव आलोड़ित कर दें तो सृजन सार्थक होता है बहना।
Deleteसुंदर भावपूर्ण प्रतिक्रिया से लेखन को नई ऊर्जा मिली।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर !! प्रभावशाली भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
Deleteरचना को स्नेह देती सुंदर प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
हाहाकार मचा भारी
ReplyDeleteचैन नहीं थोड़ा
दुख के बादल गहरे
सुख ने मुख मोड़ा
अल्पित मन मेरे।।//5
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय कुसुम बहन।शायद ये मार्मिक गीत सुनकर ही सृष्टि का ताप तनिक कम हो//
सस्नेह आभार आपका रेणु बहन, गीत सुनकर तो क्या रेणु बहन पर्यावरण के लिए कुछ करें तो यह जरूर होगा।
Deleteआपका स्नेहिल आभार हृदय से।
आर्त्त भाव से हृदय भर रहा है। अति सुन्दर कृति।
ReplyDeleteजी रचना अगर पाठक को हृदय को द्रवित करती है तो रचनाकार स्वयं को धन्य मानता है।
Deleteहृदय से बहुत बहुत सारा आभार आपका।
सादर सस्नेह।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDelete