कौन पढ़े मेरी कविता
चिर निद्रा के आलिंगन में
उतरेगा थक कर सविता
कह दो इसके बाद जगत में
कौन पढ़े मेरी कविता।
आखर-आखर श्वांस पिरोई
भावों की है रंगोली
अंतर का आलोक उजासित
ज्यों केसर की है होली
समतल या पथरीली राहें
रही लेखनी बन भविता।।
कह दो इसके बाद जगत में
कौन पढ़े मेरी कविता।।
पत्राजन रंग श्वेत पाने
भाग्य अपना बाँचते हैं
मेघा पुर में स्वर्ण कितना
धर्म काँटे जाँचते हैं
ज्यों आँखों से ओझल राही
जन मानस पट की धविता।।
कह दो इसके बाद जगत में
कौन पढ़े मेरी कविता।।
भाषा का आडम्बर हो या
भावों के माणिक मोती
निज हृदय उदगार अनुपम
गंगा जल से नित धोती
मन की बातें बूझे कोई
बने कौन दृष्टा पविता।।
कह दो इसके बाद जगत में
कौन पढ़े मेरी कविता।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बेहतरीन।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
जी हृदय से आभार आपका, में पाँच लिंक पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर सस्नेह।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 12 मई 2022 को 'जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से हृदय में ' (चर्चा अंक 4428 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी हृदय से आभार आपका, मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर सस्नेह।
आखर-आखर श्वांस पिरोई
ReplyDeleteभावों की है रंगोली
अंतर का आलोक उजासित
ज्यों केसर की है होली
समतल या पथरीली राहें
रही लेखनी बन भविता।।
बेहतरीन रचना
मनोज जी हृदय से आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
सादर।
भाषा का आडम्बर हो या
ReplyDeleteभावों के माणिक मोती
निज हृदय उदगार अनुपम
गंगा जल से नित धोती
मन की बातें बूझे कोई
बने कौन दृष्टा पविता।।
..सुंदर सटीक अभिव्यक्ति।
सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
भावों को आलोड़ित करता सुंदर सृजन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
आखर-आखर श्वांस पिरोई
ReplyDeleteभावों की है रंगोली
अंतर का आलोक उजासित
ज्यों केसर की है होली
समतल या पथरीली राहें
रही लेखनी बन भविता।।
आपकी लेखनी का जादू अनूठा है कुसुम जी ! लाजवाब सृजन ।
आपकी हृदय को सुकून देती टिप्पणी से लेखन सार्थकता को अग्रसर होता है,और लेखनी को नव उर्जा मिलती है मीना जी।
Deleteसस्नेह आभार आपका।