निराशा को धकेलो
चारों ओर जब निराशा
के बादल मंडराए
प्रकाश धीमा सा हो
अंधेरा होने को हो
कुछ भी पास न हो
किसी का साथ न हो
मन डूबा सा जाए
कुछ समझ न आए
तब एक बार शक्ति लगाकर
अपने खोये आत्मविश्वास
को ललकारो, उठो चलो
लगेगा मैं चल सकता हूँ
आने वाली सूर्य रश्मियाँ
काफी चमक के साथ
स्वागत करेगी
यह निश्चय ही होगा
मन में ठान लो।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत !!सुंदर आह्वान !!
ReplyDeleteजी सुंदर बात कही आपने रचना को समर्थन मिला ।
Deleteहृदय से आभार आपका।
सस्नेह।
आपकी लिखी रचना सोमवार २३ मई 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
This comment has been removed by the author.
Deleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय, पाँच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 23 मई 2022 को ' क्यों नैन हुए हैं मौन' (चर्चा अंक 4439) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी हृदय से आभार आपका आदरणीय, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका ।
Deleteसादर।
आशा का संचार करती सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
जी से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
आशा और विश्वास जगाती सुंदर रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका अनिता जी। बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteसस्नेह।
जीवन की
ReplyDeleteसूखी लकड़ी की नोंक में
सोयी नन्हीं-सी आशा
जब अंधेरी परिस्तिथियों की
ख़ुरदरी ज़मीं से रगड़ाती हैं
पलभर जीने की चाह में
संघर्षरत
दामिनी-सी चमककर
उजालों की दुनिया से
साक्षात्कार करवाती है।
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सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती सुंदर अभिव्यक्ति दी।
प्रणाम
सादर।
वाह! श्वेता आपने सृजन के समानांतर सुंदर से भाव उकेर कर रचना को नये आयाम दिये।
Deleteसस्नेह आभार।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आपकी।
प्रेरणादायक रचना आदरणीय ।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
अपने खोये आत्मविश्वास
ReplyDeleteको ललकारो, उठो चलो
लगेगा मैं चल सकता हूँ
आने वाली सूर्य रश्मियाँ
काफी चमक के साथ
स्वागत करेगी
यह निश्चय ही होगा
मन में ठान लो।।
बहुत ही प्रेरक एवं प्रेरणादायक सृजन
वाह!!!
सस्नेह आभार आपका सुधा जी रचना पर भावपूर्ण टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
आत्मविश्वास ही समस्त सफलताओं का सूत्रधार है।संसार इसी से जन्मी हर आशा पर जीवित है।प्रेरक रचना के लिए बधाई प्रिय कुसुम बहन 🙏🌺🌺♥️♥️
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही आपने भावों को समर्थन देती सुंदर प्रतिक्रिया प्रिय रेणु बहन।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
सही कहा। यदि निराशा को नहीं धकेला गया तो जीवन ही अंधकारमय हो जाएगा। प्रभावी शब्द।
ReplyDeleteरचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया ने लेखनी को नई ऊर्जा और लेखन को स्थायित्व दिया।
Deleteसस्नेह आभार आपका अमृता जी।
बहुत सुंदर रचना
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