अमलतास की शोभा
पीत वर्णी पुष्प दल से
वृक्ष दल शोभित भले
रम्य मोहक रूप मंजुल
काँति पट दीपक जले।
ग्रीष्म ऋतु में मुस्कुराते
सूर्य सी आभा झरे
जब चले लू के थपेड़े
आँख शीतलता भरे
राह चलते राहगीर को
धूप में पंखा झले।।
अंग औषधि का खजाना
व्याधिघाती धर्म है
सुनहरी फूहार पादप
और कितने मर्म है
देव नगरी सी अनुपमा
छाँव इसके ही तले।।
स्वर्ण झूमें शाख शाखा
भूषणों का चाव है
पात तक जब छोड़ते
रुक्ष मौसम घाव है
तब तुम्हीं श्रृंगार करते
हो भ्रमित मधुकर छले।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२७-०५-२०२२ ) को
'विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे अनगिनत पत्र'(चर्चा अंक-४४४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
अहा! पीतवर्ण से सुशोभित अमल्तास पर अभिनव सृजन प्रिय कुसुम बहन।निश्चित रूप से अमताश भी इतरा कर आत्म मद में चूर हो झूम उठे ये प्रशस्ति गान सुनकर 👌👌बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं इस मधुर रचना के लिए 🙏🌺🌺♥️♥️
ReplyDeleteआपके अहा! ने जैसे शाबाशी दी है सृजन को, रेणु बहन लेखन सार्थक हुआ आपकी उत्साहवर्धक व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
ग्रीष्म ऋतु में मुस्कुराते
ReplyDeleteसूर्य सी आभा झरे
जब चले लू के थपेड़े
आँख शीतलता भरे
राह चलते राहगीर को
धूप में पंखा झले।।,,, बहुत सुंदर रचना,गर्मी में शीतलता प्रदान करने वाले सुंदर पौधे ।
जी हृदय से आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
अप्रतिम रचना
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय दी।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
सादर।
बहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
सादर।
अंग औषधि का खजाना
ReplyDeleteव्याधिघाती धर्म है
सुनहरी फूहार पादप
और कितने मर्म है
देव नगरी सी अनुपमा
छाँव इसके ही तले।।
ग्रीष्म में खिलना तो विशेषता है ही अमलतास की...लेकिन इसके औषधीय गुणों पर भी प्रकाश डालती बहुत ही अद्भुत एवं लाजवाब कृति ।
वाह!!!
आपने रचना को पूरा स्नेह दिया सुधा जी ।
Deleteसच लेखन सार्थक हुआ।
हृदय से आभार आपका।
सस्नेह।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह
जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
अमलतास सच सुकून देने वाला है । बहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर सस्नेह।
लाजवाब रचना।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए ।
Deleteसादर।
अति सुन्दर शब्द शिल्प में गूंथा हुआ नव अन्वेषी सौन्दर्य अप्रतिम है।
ReplyDeleteआपकी मोहक प्रतिक्रिया रचना के लिए नव ऊर्जा है।
Deleteहृदय से आभार आपका।
सस्नेह।
ग्रीष्म ऋतु में मुस्कुराते
ReplyDeleteसूर्य सी आभा झरे
जब चले लू के थपेड़े
आँख शीतलता भरे
राह चलते राहगीर को
धूप में पंखा झले।।
सच, इस तपती गर्मी में अमलतास के पीले फूल आंखों को शीतलता प्रदान करते हैं, प्रकृति पर तो आपकी लेखनी का जवाब नहीं कुसुम जी 🙏
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी सुंदर व्याख्यात्मक ,भावों को विस्तार देती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसहृदय आभार आपका।
सस्नेह।
बहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteमैंने भी अमलतास पर कुछ पंक्तियां लिखीं हैं आपकी उत्कृष्ट रचना को समर्पित हैं...
अमलतासी टहनियों से,
लटकती है वल्लरी
चूमते अधरों को कुमकुम,
केसरी नव रसभरी
कोंपलें खिलने लगीं
जो थीं अभी तक शीतमय ॥
बैठ जाओ
पास मेरे
हो गई हूँ गीतमय ॥
हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी काव्यात्मक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteबहुत बहुत सुंदर सृजन जिज्ञासा जी आपने तो श्रृंगार को श्रृंगारित कर दिया ।
सस्नेह।
अमलतास पर बहुत सुंदर सृजन, कुसुम दी।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका ज्योति बहन उत्साह वर्धन के लिए।
Deleteसस्नेह।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 31 मई 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अमलतास की शोभा निराली है। अति सुन्दर कृति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह!
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