जो फूलों सी ज़िंदगी जीते काँटे हज़ार लिये बैठे हैं।
दिल में फ़रेब होंठों पर झूठी मुस्कान लिये बैठें हैं।
ऊपर खुला आसमां ख्वाबों के महल आँखों में।
कुछ टूटते अरमानों का ताजमहल लिये बैठें हैं।
सफेद दामन दिखते जिनके दिल दाग़दार हैं उनके।
एक भी तो ज़वाब नहीं सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं।
हंसते हुए चेहरों के पीछे छुपे दिल लहूलुहान से।
क्या लें दर्द किसी का अपने हज़ार लिये बैठें हैं।
टुटी कश्ती वाले हौसलों की पतवार पर सवार।
डूबने से डरने वाले साहिल पर नाव लिये बैठें हैं।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
"क्या लें दर्द किसी का अपने हज़ार लिये बैठें हैं।" बहुत सुंदर!
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
लाज़बाब👌👌
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आदरणीय दी।
Deleteरचना को स्नेह मिला आपका।
सादर।
वाह !
ReplyDeleteयथार्थ का सटीक चित्रण।
बेहतरीन गजल ।
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
एक एक शेर यथार्थ को बयान करता हुआ।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
वाह ......खूबसूरत ग़ज़ल ।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर सस्नेह।
सबकी एक ही रामकहानी कह दी आपने तो कुसुम जी..वाह हंसते हुए चेहरों के पीछे छुपे दिल लहूलुहान से।
ReplyDeleteक्या लें दर्द किसी का अपने हज़ार लिये बैठें हैं। ..वाह वाह
हृदय तल से आभार आपका अलकनंदा जी,आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर सस्नेह।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (17-5-22) को "देश के रखवाले" (चर्चा अंक 4433) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जी हृदय से आभार आपका कामिनी जी, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteचर्चा पर उपस्थित हो आई हूँ।
सादर सस्नेह।
वाह!भावपूर्ण
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
वाह बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
वाह!बहुत सुंदर सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteक्या लें दर्द किसी का अपने हज़ार लिये बैठें हैं.. वाह!
हृदय से आभार आपका अनिता जी।
Deleteआपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
सस्नेह।
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका मनोज जी।
Deleteउत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
सादर।
टूटी कश्ती वाले हौसलों की पतवार पर सवार।
ReplyDeleteडूबने से डरने वाले साहिल पर नाव लिये बैठें हैं।
वाह !! बहुत ख़ूब !! बेहतरीन ग़ज़ल कुसुम जी !
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी पोस्ट पर उपस्थिति लेखन में नव ऊर्जा का संचार करती है ।
Deleteसस्नेह।
सफेद दामन दिखते जिनके दिल दाग़दार हैं उनके।
ReplyDeleteएक भी तो ज़वाब नहीं सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं।
हंसते हुए चेहरों के पीछे छुपे दिल लहूलुहान से।
क्या लें दर्द किसी का अपने हज़ार लिये बैठें हैं। //
मन को छू गई ये भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय कुसुम बहन।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🌺🌺♥️♥️
वाह! रेणु बहन आपका मुख्य भावों पर अतीव स्नेह रचना को ऊर्जावान कर गया।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
वाह! क्या बात है। बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई अमृता जी।
Deleteसस्नेह आभार।
सुंदर सराहनीय सृजन... 👍👍
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