गीतिका (हिंदी ग़ज़ल)
221 2121 1221 212
रूपसी
सज रूप को निखार रुचिर कामिनी चली।
वो अप्सरा समान गगन स्वामिनी चली।।
है लट छटा अनूप सुमन वेणिका धरे।
रख चाँद को ललाट लगे यामिनी चली।
शुक नासिका उदार लिए स्वर्ण नथनिया।
रतनार है कपोल शिशिरयामिनी चली।
है मंद हास रेख अधर पर खिली खिली।
वो रूपसी सुहास चटक दामिनी चली।
दो हाथ पर सुवास खिला आलता रचा।
ज्यों नेह भार साथ लिए पद्मिनी चली।
जब पाँव उठ उमंग चले आज प्रीत के।
है झाँझरी अधीर कहीं रागिनी चली।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09.06.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4456 में दिया जाएगा| मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
जी हृदय से आभार आपका चर्चा में स्थान देने के लिए।
Deleteमैं उपस्थित रहूंगी चर्चा मंच पर।
सादर।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 9 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
जी हृदय से आभार आपका पाँच लिंक पर स्थान देने के लिए।
Deleteमैं उपस्थित रहूंगी मंच पर।
सादर सस्नेह।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
बहुत सुंदर और मनोहारी वर्णन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका संगीता जी, आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसादर सस्नेह।
मनहर नायिका चित्रण
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteरचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
अद्भुत सौंदर्य छटा!
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका विश्व मोहन जी।
Deleteनव ऊर्जा का संचार करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
सादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteसादर।
अद्भुत मनोहारी वर्णन !!
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका अनुपमा जी ।
Deleteरचना को स्नेह मिला।
सस्नेह।
इस गीत के माध्यम से अदभुत, मनमोहनी छवि दिखाई आप ने, वैसे एक बात बताऊं कुसुम जी इस गीत में आपने हमारे परिवार की चार सदस्य हैं, कामिनी मैं, दामिनी मेरी बेटी, रागिनी मेरी बहन और यामिनी मेरी भतीजी, अदभुत सृजन,सादर नमन आपको 🙏
ReplyDeleteयह भी खूब संयोग है ।
Deleteबहुत सुंदर । आप इस रचना को संजो लें।
Deleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार प्रिय कामिनी जी।
Deleteआपको ये प्रयास पसंद आया।
अहा! ये तो अद्भुत संयोग है, जैसे आपको और आपके सभी स्नेही पात्रों को ध्यान में रख कर ही रचना लिखी गई हो।
मेरे लिए ये सुखद रहा कि आपके स्नेही जनो का
नाम पता चला ।
तो मेरी ये रचना स्नेही सखी कामिनी जी, दामिनी बिटिया रागिनी जी और यामिनी बिटिया को समर्पित करती हूं।
सस्नेह।
वाह ! आजकल इतने सुंदर और आलंकारिक शब्दों में नायिका का नख शिख सौंदर्य चित्रण कहाँ पढ़ने को मिलता है ? अति सुंदर शब्द चित्र।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका मीना जी आपकी काव्यात्मक, आत्मीयता भरी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
है झाँझरी अधीर कहीं रागिनी चली।।
ReplyDeleteवाह..अद्भुत सौंदर्य वर्णन ।
आपको पसंद आई जिज्ञासा जी मन प्रसन्न हुआ लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
वाह!कुसुम जी ,अद्भुत👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका शुभा जी, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
वाह वाह कुसुम जी बहुत ही मनभावन गीतिका !!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब 👌👌👋👋
वाह ... गज़ल के बहार में सात्विक हिन्दी भाव बाखूबी लिखे हैं ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
जी हृदय से आभार आपका नासवा जी , गीतिका ग़ज़ल का ही हिंदी रूप हैं दोनों में समान मापनी (बहर) ही चलती है।
Deleteआप तो उत्कृष्ट ग़ज़ल और अस्आर लिखते हैं।
आपकी विहंगम दृष्टि से गीतिका सार्थक हुई।
सादर।
सुंदर शब्द चित्र।
ReplyDelete