आम आदमी
यामिनी ने नेह जोड़ा
तम जगत में भर चला
राग के पल साथ लेकर
दीप धुँधला सा जला।
डोलती परछाइयों में
क्लाँत मुखरित भाव है
पर पगों की चपलता में
देहरी का चाव है
छाँव हो सर पर निकेतन
सत्व निज का ही पला।।
आम मानस के पटल का
बस गणित सामान्य है
सब उड़ानें हैं सहज सी
आज भर का धान्य है
दर्द के संसार पर तो
नींद का पहरा भला।।
ढो रहे दुर्भाग्य को ही
रस कहीं दिखता नहीं
वो विधाता भाग्य दाता
चैन पल लिखता नहीं
हर निशा ये बात कहती
आज का दिन अब टला।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका ज्योति बहन उत्साह वर्धन हुआ आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आलोक जी उत्साह वर्धन हेतु।
Deleteसादर।
बहुत उम्दा
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन हेतु।
Deleteसादर।
ढो रहे दुर्भाग्य को ही
ReplyDeleteरस कहीं दिखता नहीं
वो विधाता भाग्य दाता
चैन पल लिखता नहीं
हर निशा ये बात कहती
आज का दिन अब टला।।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब।
सुंदर विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई सुधा जी।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
बहुत ही लाजवाब👍👍
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर।
बेहतरीन सृजन 👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका सखी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया रचना को नव उर्जा देती है।
Deleteसस्नेह।