Tuesday, 14 June 2022

आम आदमी


 आम आदमी 


यामिनी ने नेह जोड़ा

तम जगत में भर चला

राग के पल साथ लेकर

दीप धुँधला सा जला।


डोलती परछाइयों में

क्लाँत मुखरित भाव है

पर पगों की चपलता में

देहरी का चाव है

छाँव हो सर पर निकेतन

सत्व निज का ही पला।।


आम मानस के पटल का

बस गणित सामान्य है

सब उड़ानें हैं सहज सी

आज भर का धान्य है

दर्द के संसार पर तो

नींद का पहरा भला।।


ढो रहे दुर्भाग्य को ही

रस कहीं दिखता नहीं

वो विधाता भाग्य दाता 

चैन पल लिखता नहीं

हर निशा ये बात कहती

आज का दिन अब टला।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

12 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।

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    1. हृदय से आभार आपका ज्योति बहन उत्साह वर्धन हुआ आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से।
      सस्नेह।

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  2. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. हृदय से आभार आपका आलोक जी उत्साह वर्धन हेतु।
      सादर।

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  3. Replies
    1. हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन हेतु।
      सादर।

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  4. ढो रहे दुर्भाग्य को ही

    रस कहीं दिखता नहीं

    वो विधाता भाग्य दाता

    चैन पल लिखता नहीं

    हर निशा ये बात कहती

    आज का दिन अब टला।।
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब।

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    1. सुंदर विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई सुधा जी।
      सस्नेह आभार आपका।

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  5. बहुत ही लाजवाब👍👍

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  6. बेहतरीन सृजन 👌👌

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    1. सस्नेह आभार आपका सखी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया रचना को नव उर्जा देती है।
      सस्नेह।

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