प्रथम वर्षा
कोकिले सुन तान तेरी
हो मुदित मन घूम नाचे
है भुवन आनंद छाया
बिन खरच के सूम नाचे।
सरसराती दामिनी है
द्यो नगाड़े बज रहे हैं
श्याम बादल नीर थामे
धैर्य अपना तज रहे हैं
झूमते हैं बाल बाला
साथ उनके टूम नाचे।।
आसमा से मोद उतरा
और पुलकित हैं सकल जग
लो प्रथम बारिश नवेली
आ गई होले धरे पग
रागिनी वर्षा सुनाए
ये धरा फिर झूम नाचे।
पर्वतों की चोटियों को
स्नान मल-मल के कराती
पात मंजुल झूमते है
सज चले हैं ज्यों बराती
सनसनाती है हवाएँ
पादपों को चूम नाचे।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह मन मयूर थिरक उठा !!
ReplyDeleteढेर सा आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
प्रथम वर्षा का बहुत सुंदर वर्णन, कुसुम दी।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
पर्वतों की चोटियों को
ReplyDeleteस्नान मल-मल के कराती
पात मंजुल झूमते है
सज चले हैं ज्यों बराती
सनसनाती है हवाएँ
पादपों को चूम नाचे।।
वाह! कितना सुंदर रूपक सजाया है आपने! प्रथम वर्षा का मनोहारी वर्णन!
रचना पर विहंगम दृष्टि से प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह
इस तपती, जलती, झुलसाती गर्मी में यह रचना और भी मनोहारी हो गयी है ! अब तो विवरण के साकार होने की प्रतीक्षा है
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteसार्थक प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
सादर।
आसमा से मोद उतरा
ReplyDeleteऔर पुलकित हैं सकल जग
लो प्रथम बारिश नवेली
आ गई होले धरे पग
रागिनी वर्षा सुनाए
ये धरा फिर झूम नाचे।
वाह!!!
प्रथमबारिश का बहुत ही मनोहारी शब्दचित्रण
लाजवाब नवगीत।
सस्नेह आभार आपका सुधा जी।
Deleteआपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteप्रकृति को अनोखे अंदाज़ से पिरोया है शब्दों में ... मोसम के आगमन का स्वागत करते भाव ...
हृदय से आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसादर।
मन का मयूरा
ReplyDeleteनिरखता घन
झांझरी सा
छम छम नाचे
मनमोहक सृजन के सम्मान में समर्पित । अद्भुत और मनोहर सृजन ।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१३-०६-२०२२ ) को
'एक लेखक की व्यथा ' (चर्चा अंक-४४६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका चर्चा में रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteसादर सस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteउत्साह वर्धन के लिए हृदय से आभार।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार(१३-०६-२०२२ ) को
'एक लेखक की व्यथा ' (चर्चा अंक-४४६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर।
Deleteकुसुम जी, आपकी इस कविता को सुन कर, पढ़ कर, भी अभी इंद्र देवता पसीजे नहीं हैं. शायद राग मेघ-मल्हार में लय-बद्ध आपका कोई गीत इस प्यासी धरती पर प्रथम वर्षा करा दे .
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसमय के साथ सभी कार्य पूर्ण होते हैं ।
यहां आ गई तो वहां भी पहुंचेगी जल्दी ही बरखा रानी।
सादर।