उधेड़-बुन
श्वास उखड़ती रात ढली है
सोई जाकर कक्ष।
सोन तार से कंबल ओढ़े
खड़ा अभी तक यक्ष।
कान खुजाते पल क्षण बीता
रखता आँखे बंद
और उबासी लेती करवट
नींद बची है चंद
बलध कोहलू जीवन सारा
घूम रहा है अक्ष।
संकेत यंत्र संचालित हैं
भेड़ें खाती चोट
जिस लाठी से गधे हांकते
उसी छड़ी से घोट
रेंग रही है सबकी गाड़ी
ये हैं चालक दक्ष।
सिंघासन में भारी बल है
उँगली खेले खेल
इंजन ईंधन फूंक रहा है
खड़ी हुई है रेल
पीस रही है घट्टी दाने
सौ सहस्त्र या लक्ष।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-6-22) को "पिताजी के जूते"'(चर्चा अंक 4467) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हृदय से आभार आपका कामिनी जी चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteसादर सस्नेह।
वाह!बढ़िया कहा कुसुम दी 👌
ReplyDeleteगहन कटाक्ष।
सादर
कविता के भावों को समझने के लिए हृदय से आभार आपका प्रिय अनिता।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आलोक जी।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर चित्रांकन मैम
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक उपस्थिति से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही शानदार प्रस्तुति....
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका संजय जी।
Deleteसादर।
बलध कोहलू जीवन सारा
ReplyDeleteघूम रहा है अक्ष।
वाह!!!
क्या बात..
अद्भुत बिम्ब एवं व्यंजनाएं
लाजवाब नवगीत हमेशा की तरह
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी
Deleteआपके गहन विश्लेषण से रचना सदैव कृतार्थ होती है, सदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह।
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ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteबहुत अच्छी रचना, बधाई.
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका जेन्नी जी उत्साह वर्धन हुआ आपके आने से।
Deleteसस्नेह।
सिंघासन में भारी बल है
ReplyDeleteउँगली खेले खेल
इंजन ईंधन फूंक रहा है
खड़ी हुई है रेल
पीस रही है घट्टी दाने
सौ सहस्त्र या लक्ष।।
.. जीवन के सार को दर्शाती यथार्थपरक रचना ।
हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
सिंघासन में भारी बल है
ReplyDeleteउँगली खेले खेल
इंजन ईंधन फूंक रहा है
खड़ी हुई है रेल
पीस रही है घट्टी दाने
सौ सहस्त्र या लक्ष।।
बेहतरीन रचना सखी 👌👌👌👌👌
सस्नेह आभार आपका सखी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।