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Monday, 20 June 2022

उधेड़ बुन


 उधेड़-बुन


श्वास उखड़ती रात ढली है

सोई जाकर कक्ष।

सोन तार से कंबल ओढ़े

खड़ा अभी तक यक्ष।


कान खुजाते पल क्षण बीता

रखता आँखे बंद

और उबासी लेती करवट

नींद बची है चंद

बलध कोहलू जीवन सारा

घूम रहा है अक्ष।


संकेत यंत्र संचालित हैं

भेड़ें खाती चोट

जिस लाठी से गधे हांकते

उसी छड़ी से घोट 

रेंग रही है सबकी गाड़ी

ये हैं चालक दक्ष।


सिंघासन में भारी बल है

उँगली खेले खेल

इंजन ईंधन फूंक रहा है

खड़ी हुई है रेल

पीस रही है घट्टी दाने

सौ सहस्त्र या लक्ष।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

20 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-6-22) को "पिताजी के जूते"'(चर्चा अंक 4467) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका कामिनी जी चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      सादर सस्नेह।

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  2. वाह!बढ़िया कहा कुसुम दी 👌
    गहन कटाक्ष।
    सादर

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    1. कविता के भावों को समझने के लिए हृदय से आभार आपका प्रिय अनिता।
      सस्नेह।

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  3. Replies
    1. हृदय से आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

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  4. बहुत सुन्दर चित्रांकन मैम

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    1. सस्नेह आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक उपस्थिति से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  5. बहुत ही शानदार प्रस्तुति....

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका संजय जी।
      सादर।

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  6. बलध कोहलू जीवन सारा
    घूम रहा है अक्ष।
    वाह!!!
    क्या बात..
    अद्भुत बिम्ब एवं व्यंजनाएं
    लाजवाब नवगीत हमेशा की तरह

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी
      आपके गहन विश्लेषण से रचना सदैव कृतार्थ होती है, सदा स्नेह बनाए रखें।
      सस्नेह।

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  7. Nice blog. Am very much intrested in astrology and I am a regular visitor of good blogs on astrologer. I've added your site to my regular checklist and I visit your site daily.I also visit sites like best astrologer in hyderabad which are very informative like yours. Thanks for sharing this post.

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  8. बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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    1. हृदय से आभार आपका जेन्नी जी उत्साह वर्धन हुआ आपके आने से।
      सस्नेह।

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  9. सिंघासन में भारी बल है

    उँगली खेले खेल

    इंजन ईंधन फूंक रहा है

    खड़ी हुई है रेल

    पीस रही है घट्टी दाने

    सौ सहस्त्र या लक्ष।।

    .. जीवन के सार को दर्शाती यथार्थपरक रचना ।

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    1. हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  10. सिंघासन में भारी बल है

    उँगली खेले खेल

    इंजन ईंधन फूंक रहा है

    खड़ी हुई है रेल

    पीस रही है घट्टी दाने

    सौ सहस्त्र या लक्ष।।
    बेहतरीन रचना सखी 👌👌👌👌👌

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    Replies
    1. सस्नेह आभार आपका सखी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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