नजर संभलते संभलते
लो फिसल ही गई नजर संभलते संभलते
कह गया आफताभ फिर ढलते ढलते ।
चार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
मिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।
शब ए आवारगी अब बंद भी कर दो
चांद भी ढल गया अब पिघलते पिघलते ।
फिक्र करता है किसी की कब जमाना बेदर्दी
बहल ही जायेगा दिल बहलते बहलते।
कुसुम कोठारी ।
फिक्र करता है किसी की कब जमाना बेदर्दी
ReplyDeleteबहल ही जायेगा दिल बहलते बहलते।
बेहतरीन प्रस्तुति सखी
बहुत स्नेह भरा आभार सखी ।
Deleteदिल बहल जाएगा बहलते बहलते ...
ReplyDeleteसच ही तो लिखा अहि ... ज़माना किसी की कद्र नहीं करता ... आगे निकल जाते हैं देख कर सब ... अच्छे सच्चे शेर ...
जी तहेदिल से शुक्रिया नासवा जी आपकी विधा में आपसे दाद मिलना बस लेखन सार्थक ।
Deleteसादर
ReplyDeleteचार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
मिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।
बढ़िया , यथार्थ।
सस्नेह आभार शशि भाई आपकी सराहना से लेखन को प्रवाह मिला।
Deleteबिल्कुल सही, दिल बहल ही जाएगा!!!
ReplyDeleteजी तहेदिल से शुक्रिया सार्थक प्रतिक्रिया के लिये ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
११ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सा आभार।
Deleteवाह
ReplyDeleteवल्लाह बेहतरीन ग़ज़ल कही हैं,
हरेक शेर काबिले तारीफ हैं
शब ए आवारगी अब बंद भी कर दो
चांद भी ढल गया अब पिघलते पिघलते ।
जी सादर आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया और सराहना का।
Deleteवाह !!बहुत सुन्दर नज़्म सखी
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार सखी।
Deleteसस्नेह ।
खूबसूरत ग़ज़ल..
ReplyDeleteपम्मी जी सस्नेह आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का ।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी सादर आभार ।
Deleteबहुत खूब.........
ReplyDeleteजी कामिनी जी सस्नेह आभार आपका।
Deleteचार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
ReplyDeleteमिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।
बहुत खूब.... बहुत लाजवाब...।
सुधा जी बहुत से स्नेह का आभार मोहक प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह
.........लाजवाब
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