Friday, 8 February 2019

नजर संभलते संभलते

नजर संभलते संभलते

लो फिसल ही गई नजर संभलते संभलते
कह गया आफताभ फिर ढलते ढलते ।

चार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
मिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।

शब ए आवारगी अब बंद भी कर दो
चांद भी ढल गया अब पिघलते पिघलते ।

फिक्र करता है किसी की कब जमाना बेदर्दी
बहल ही जायेगा दिल बहलते बहलते।

                कुसुम कोठारी ।

23 comments:

  1. फिक्र करता है किसी की कब जमाना बेदर्दी
    बहल ही जायेगा दिल बहलते बहलते।
    बेहतरीन प्रस्तुति सखी

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    1. बहुत स्नेह भरा आभार सखी ।

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  2. दिल बहल जाएगा बहलते बहलते ...
    सच ही तो लिखा अहि ... ज़माना किसी की कद्र नहीं करता ... आगे निकल जाते हैं देख कर सब ... अच्छे सच्चे शेर ...

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    1. जी तहेदिल से शुक्रिया नासवा जी आपकी विधा में आपसे दाद मिलना बस लेखन सार्थक ।
      सादर

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  3. चार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
    मिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।
    बढ़िया , यथार्थ।

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    1. सस्नेह आभार शशि भाई आपकी सराहना से लेखन को प्रवाह मिला।

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  4. बिल्कुल सही, दिल बहल ही जाएगा!!!

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    1. जी तहेदिल से शुक्रिया सार्थक प्रतिक्रिया के लिये ।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ११ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  6. वाह
    वल्लाह बेहतरीन ग़ज़ल कही हैं,
    हरेक शेर काबिले तारीफ हैं

    शब ए आवारगी अब बंद भी कर दो
    चांद भी ढल गया अब पिघलते पिघलते ।

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    1. जी सादर आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया और सराहना का।

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  7. वाह !!बहुत सुन्दर नज़्म सखी
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार सखी।
      सस्नेह ।

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    1. पम्मी जी सस्नेह आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का ।

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    1. जी कामिनी जी सस्नेह आभार आपका।

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  10. चार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
    मिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।
    बहुत खूब.... बहुत लाजवाब...।

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    1. सुधा जी बहुत से स्नेह का आभार मोहक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह

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