देवापगा गंगा का दर्द
कहने को विमला हूं
मैं सरीता ,निर्मला
नारी का प्रति रूप
कितनी वेदना
हृदय तल में झांक कर देखो मेरे
कितने है घाव गहरे ,
दिन रात छलते रहते
मानव तेरे स्वार्थ मुझे
अब नाम ही बदल दो मेरे
किया मुझे विमला से समला
सरीता से सूख ,रह गई रीता
निर्मला अब मैली हो गई
हे मानव तेरे मैल
समेटते समेटते ।
कुसुम कोठारी।
कहने को विमला हूं
मैं सरीता ,निर्मला
नारी का प्रति रूप
कितनी वेदना
हृदय तल में झांक कर देखो मेरे
कितने है घाव गहरे ,
दिन रात छलते रहते
मानव तेरे स्वार्थ मुझे
अब नाम ही बदल दो मेरे
किया मुझे विमला से समला
सरीता से सूख ,रह गई रीता
निर्मला अब मैली हो गई
हे मानव तेरे मैल
समेटते समेटते ।
कुसुम कोठारी।
अब नाम ही बदल दो मेरे
ReplyDeleteकिया मुझे विमला से समला
सरीता से सूख ,रह गई रीता
गंगा के दर्द को व्यक्त करती सुंदर रचना सखी
बहुत बहुत आभार सखी।
Deleteनारी का प्रति रूप
ReplyDeleteकितनी वेदना
हृदय तल में झांक कर देखो मेरे
कितने है घाव गहरे ,....बहुत मार्मिक रचना सखी |
सादर
आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया का हृदय से आभार।
Deleteगंगा की व्यथा पर मार्मिक अभिव्यक्ति कुसुम जी ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीना जी ।
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