Thursday, 7 February 2019

देवापगा गंगा का दर्द

देवापगा गंगा  का दर्द

कहने को विमला हूं
मैं सरीता ,निर्मला
नारी का प्रति रूप
कितनी वेदना
हृदय तल में झांक कर देखो मेरे
कितने है घाव गहरे ,
दिन रात छलते रहते
मानव तेरे स्वार्थ मुझे
अब नाम ही बदल दो मेरे
किया मुझे विमला से समला
सरीता से सूख ,रह गई रीता
निर्मला अब मैली हो गई
हे मानव तेरे मैल
समेटते समेटते ।

  कुसुम कोठारी।

6 comments:

  1. अब नाम ही बदल दो मेरे
    किया मुझे विमला से समला
    सरीता से सूख ,रह गई रीता
    गंगा के दर्द को व्यक्त करती सुंदर रचना सखी

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  2. नारी का प्रति रूप
    कितनी वेदना
    हृदय तल में झांक कर देखो मेरे
    कितने है घाव गहरे ,....बहुत मार्मिक रचना सखी |
    सादर

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    1. आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया का हृदय से आभार।

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  3. गंगा की व्यथा पर मार्मिक अभिव्यक्ति कुसुम जी ।

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    1. सस्नेह आभार मीना जी ।

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