पाटलों की नियति
स्थलकमल पर झिलमिलाई
ओस किरणों से लड़ी
पुष्प पातों सो रही थी
अब विदाई की घड़ी।
रूप भी है गंध मोहक
और मुख मृदु हास है
लिप्त बैठे सेज कंटक
भृंग डोले पास है
क्षण पलों की देह कोमल
लहलहा काया झड़ी।।
शाख फुनगी मुस्कुराया
इक सजीला फूल जब
तोड़ने को हाथ बहका
चुभ गया लो शूल तब
पाटलों की पंखुड़ी फिर
खिलखिला कर हँस पड़ी।
कंट हैं रक्षक हमारे
है निरापद साथ भी
हाँ बिखरना दो दिनों में
कार्य या अकराथ भी
देव भालों पर चढ़े या
बिंध कर बनते लड़ी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (१३ -०३ -२०२२ ) को
'प्रेम ...'(चर्चा अंक-४३६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका।
Deleteमैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह ।
प्रकृति की खूबसूरत देन है गुलाब और उसके जीवनकाल को उतनी ही ख़ूबसूरती से आपने परिभाषित किया है ।आपका शब्द-विन्यास
ReplyDeleteसदैव मनमोहक लगता है ।
आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ मीना जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह आभार।
इस गुलाबी कृति की गंध मन में बस गई।
ReplyDeleteआपकी मोहक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ अमृता जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी।
Deleteकंट हैं रक्षक हमारे
ReplyDeleteहै निरापद साथ भी
हाँ बिखरना दो दिनों में
कार्य या अकराथ भी
देव भालों पर चढ़े या
बिंध कर बनते लड़ी।।
बहुत सुंदर और खिलते हुए भाव ।बहुत शुभकामनाएं सखी ।
आपकी सार्थक टिप्पणी से लेखन प्रवाह मान हुआ जिज्ञासा जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
फूलों की गरिमा और महिमा को जताती सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteआपकी गरिमा मय टिप्पणी से लेखन मुखरित हुआ अनिता जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
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ReplyDeleteOther Posts
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अति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दी।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सादर सस्नेह।
गुलाब की नियति का मर्मस्पर्शी वर्णन।
ReplyDeleteसारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर।
अति सुंदर रचना !!
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय, उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसादर।
हृदय से आभार आपका।
ReplyDeleteमैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर ।
शाख फुनगी मुस्कुराया
ReplyDeleteइक सजीला फूल जब
तोड़ने को हाथ बहका
चुभ गया लो शूल तब
पाटलों की पंखुड़ी फिर
खिलखिला कर हँस पड़ी।
फूल और शूल की जोड़ी पर बने इस लाजवाब नवगीत के तो क्या कहने...
बहुत ही लाजवाब।