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Tuesday, 1 March 2022

नव रसों का मेह कविता


 नव रसों का मेह कविता


थाह गहरे सिंधु जैसी

उर्मिया मन में मचलती

शब्द के भंडार खोले

लेखनी मोती उगलती।।


लिख रहे कवि लेख अनुपम

भाव की रस धार मीठी

गुड़ बने गन्ना अनूठा

चाशनी चढ़ती अँगीठी

चाल ग़ज़लों की भुलाकर

आज नव कविता खनकती।


स्रोत की फूहार इसमें

स्वर्ग का आनंद भरते

सूर्य किरणों से मिले तो

इंद्रधनुषी स्वप्न झरते

सोम रस सी शांत स्निगधा

तामरस सी है बहकती।।


वीर या श्रृंगार करुणा

नव रसो का मेह छलका

रूप कितने ही हैं इसके

ताल में ज्यों चाँद झलका

कंटकों सी ले चुभन तो

रात रानी बन लहकती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

29 comments:

  1. वाह!बहुत ही सुंदर।
    भावों के हिण्डोले पर झूलते मधुर सृजन।
    सादर

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    1. हृदय से आभार आपका प्रिय अनिता, लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  2. वाह ... मधुर पंक्तियाँ ...
    वातावरण को सुगंधुत करते भाव ...

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    1. हृदय से आभार आपका नासवा जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  3. बेहद खूबसूरत सृजन सखी।

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका सखी, लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 4358 में दिया जाएगा | चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका चर्चा में स्थान देने के लिए।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. हृदय से आभार आपका पाँच लिंको पर रचना को शामिल करने के लिए, मैं उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  6. Replies
    1. हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन हेतु।
      सादर।

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  7. Replies
    1. हृदय से आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  8. Replies
    1. हृदय से आभार आपका , लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  9. एक कविता में क्या क्या कुछ नही होता.
    सुंदर अभिव्यक्ति.
    Welcome to my New post- धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा

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    1. हृदय से आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  10. वाह ! नवरसों की फुहारों से मन भीग ही गया है इस सुंदर रचना को पढ़कर, सुंदर उपमाओं के माध्यम से साहित्य रस की मिठास को आपने उकेरा है

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    1. हृदय से आभार आपका , लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  11. Replies
    1. हृदय से आभार आपका शिवम् जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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  12. बहुत बढ़िया।

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    1. हृदय से आभार आपका ज्योति बहन , लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  13. नवरसों की फुहार सी कोमल भावों से गुँथी अनमोल कविता । आपका सृजन मन्त्रमुग्ध कर देता है ।

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    1. हृदय से आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहसिक्त समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  14. वीर या श्रृंगार करुणा
    नव रसो का मेह छलका
    रूप कितने ही हैं इसके
    ताल में ज्यों चाँद झलका
    वाह!!!
    शब्द - शब्द से नवरसों के मेह की फुहार अंतर्मन को भिगो गयी...
    हमेशा की तरह लाजवाब सृजन।

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    1. हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  15. हृदय से आभार आपका आलोक जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
    सादर।

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