अंतरराष्ट्रीय कविता दिवस पर सभी कवि कवियत्री वृंद को समर्पित।🌷
कवि जुलाहा!
धीर जुलाहा बन रे कवि तू
बुनदे कविता जग में न्यारी ।
ताने बाने गूँथ रखे जो
धागा-धागा सूत किनारी।
कोरे पन्ने रंग विविध हों
मोहक शब्दों की मणि माला
अंतर तक आलोक जगा दें
खोले बोध ज्ञान का ताला
चतुर नीलगर वसन अनोखे
चमक रही है धारी-धारी।।
नाप तोल से शब्द सजे तो
छंद मृदंग बजे भीने से
तार -तार सन्मति से जोड़े
मंजुल वसन सजे झीने से
भाव हमारे अनुयायी के
शिल्प बने पहचान हमारी।।
आखर-आखर से जुड़ते हैं
भाव तरंगी बहने लगती
शब्द शक्तियाँ मुखरित हो तो
छुपी कहानी कहने लगती
मृदुल लेखनी खिलकर उभरे
बहती है गीतों की झारी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-3-22) को "कविता को अब तुम्हीं बाँधना" (चर्चा अंक 4376 )पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
हृदय से आभार आपका कामिनी जी रचना को चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने के लिए।
Deleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सस्नेह।
सखि सुंदर भाव की सजी कविता
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका प्रिय सखी
Deleteसस्नेह।
शब्द-शब्द मधुर-मधुर ।
ReplyDeleteकुसुम सखी, इस मीठी कविता के लिए आभारी ।
अभिनंदन ।
हृदय से आभार आपका नूपुर सखी जी, आपकी उपस्थिति से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
समझ नहीं आ रहा कौन सा बंद उठाऊँ...
ReplyDeleteगज़ब लिखते हो दी 👌
आखर-आखर से जुड़ते हैं
भाव तरंगी बहने लगती
शब्द शक्तियाँ मुखरित हो तो
छुपी कहानी कहने लगती
मृदुल लेखनी खिलकर उभरे
बहती है गीतों की झारी।।... वाह।
सादर
आपकी स्निग्ध स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन और मुझे दोनों को नव उर्जा मिली प्रिय अनिता ।
Deleteसस्नेह आभार।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अलोक जी।
Deleteसादर।
कल कल बहती निर्झरिणी से भाव और मनमोहक शब्द-विन्यास ।
ReplyDeleteहर बंध अपने आप मे अनुपम । अप्रतिम सृजन । आभार कुसुम जी!
आपकी सुंदर मोहक बोलती प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हुआ मीना जी लेखन को नव ऊर्जा मिली।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
कवि दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनाऐं कुसुम जी, बहुत ही खूब लिखा कि..कोरे पन्ने रंग विविध हों
ReplyDeleteमोहक शब्दों की मणि माला
अंतर तक आलोक जगा दें
खोले बोध ज्ञान का ताला
चतुर नीलगर वसन अनोखे
चमक रही है धारी-धारी।।...वाह
बहुत आभार आपका अलकनंदा जी, आपकी विशिष्ट प्रतिक्रिया से रचना को नये आयाम मिले।
Deleteसस्नेह।
विश्व कविता दिवस पर सुन्दर रचना .... कवी जुलाहा न जाने कैसी कैसी काल्पनिक चादर बुन लेता है ...
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका संगीता जी, आपकी उपस्थिति सदा मन को हर्ष से भर देती है, सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आपका।
Deleteसादर सस्नेह।
धीर जुलाहा बन रे कवि...
ReplyDeleteवाह!!!
क्या बात...
कोरे पन्ने रंग विविध हों
मोहक शब्दों की मणि माला
अंतर तक आलोक जगा दें
खोले बोध ज्ञान का ताला
सराहना से परे ...कवि बनने की चाह रखने वालों के सुन्दर कविता बनाने का सछत्र सम्प्रेषित करती लाजवाब कृति....
वाह वाह!!!