अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नारियों को समर्पित।
उन्मुक्त नारी
हाथ बढ़ाकर व्योम थाम लूँ
आकांक्षाएं उड़ती रहतीं
एक बार ऊँचाई छूकर
शून्य मूल्य पर गाथा रचतीं ।।
बंधन काया पर हो सकते
बाँधे मन को कौन कभी
चाहे डोर टूट कर बिखरे
खण्डित मण्डित हो स्वप्न सभी
किस अज्ञात खूँटे टँगे
थाप हवाओं के भी सहती ।।
और हौसले के हय चढ़कर
आँचल में तारे भर लाती
अपनी राहें स्वयं सँवारूँ
गीत विजय के मधुर सुनाती
मोड़ हवा का रुख निज बल से
संग उसी के दृढ़ हो बहती।।
युग बदले मेरी सत्ता के
नव स्थापित सब करना होगा
गार्गी और अनुसुया सा दम
हर नारी को भरना होगा
मोहक आभा तिमिर चीर कर
बंद सभी छिद्रों से झरती।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
हाथ बढ़ाकर व्योम थाम लूँ
ReplyDeleteआकांक्षाएं उड़ती रहतीं
एक बार ऊँचाई छूकर
शून्य मूल्य पर गाथा रचतीं ।।
उम्दा सृजन
हृदय से आभार आपका।
Deleteआपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर और अच्छी रचना
ReplyDeleteवाह
हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteरचना को नव उर्जा मिली।
सादर।
ReplyDeleteनारी ना अरि स्त्री की बनना होगा
सुन्दर रचना
वाह! व्यंजना हो तो ऐसी।
Deleteसस्नेह आभार।
नव आव्हान से ओतप्रोत सुन्दर एवं सशक्त अभिव्यक्ति नव ऊर्जा का संकल्प भर रही है। नव सृजन के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमन को सुकून देती मोहक शब्दावली से उत्साह वर्धन हेतु हृदय से आभार आपका अमृता जी।
Deleteसस्नेह।
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ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०३ -२०२२ ) को
'गाँव की माटी चन्दन-चन्दन'(चर्चा अंक-४३६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर आभार आपका चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी,
Deleteचर्चा में शामिल होना सदा सुखद अनुभव है।
सस्नेह।
युग बदले मेरी सत्ता के
ReplyDeleteनव स्थापित सब करना होगा
गार्गी और अनुसुया सा दम
हर नारी को भरना होगा
मोहक आभा तिमिर चीर कर
बंद सभी छिद्रों से झरती।। बहुत खूब ।सराहनीय रचना ।
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteस्त्री हो या पुरुष हो, यदि वह अपनी प्रतिभा, अपनी क्षमता, अपनी प्रतिभा, के पूर्ण विकास में सतत प्रयत्नशील रहे तो वह कुछ भी हासिल कर सकता/सकती है.
हृदय से आभार आपका आदरणीय,सही कहा आपने जीवन में सफलता के लिए प्रयत्नशील होना आवश्यक है,
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से लेखन को संबल मिला ।
सादर।
महिला दिवस पर प्रेरक सृजन
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका अनिता जी, सार्थक प्रतिक्रिया से सृजन प्रवाह मान हुआ।
Deleteसस्नेह।
मुझ बिन हर कल्पना अधूरी
ReplyDeleteजगत सृष्टि एक स्वप्न रह जाये
मैं न रहूँ तो शायद लगे यों
प्राण न हो ज्यों तन रह जाये।
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मन को ओज और संबल प्रदान करती बेहतरीन सशक्त रचना दी।
प्रणाम
सादर।
वाह! सुंदर काव्यात्मक प्रतिक्रियाएं श्वेता रचना के समानांतर भावों से सज्जित बंध से रचना को नव उर्जा मिली ।
Deleteसस्नेह आभार।
युग बदले मेरी सत्ता के
ReplyDeleteनव स्थापित सब करना होगा
गार्गी और अनुसुया सा दम
हर नारी को भरना होगा
मोहक आभा तिमिर चीर कर
बंद सभी छिद्रों से झरती।।
बहुत ही प्रेरक एवं ओजपूर्ण आवाहन
लाजवाब सृजन।
वाह!!!