Followers

Thursday, 24 March 2022

कविता को मुक्ति


 कविता को मुक्ति


हाँ ये मन पुकारता है

भाव मेरे चिर तरुण हो

हो स्वछंद पाखी सरिखे

ज्यों गगन विचरे अरुण हो।


न बांधों इनको बेड़ियों में

वात सा आजाद छोड़ो

श्वास लेने दो सहज सी

खिड़कियों के पाट मोड़ो

लेखनी निर्बाध दौड़े

सिंधु उर्मिल सा वरुण हो।।


बंधनों में भाव मेरे

प्राण से निस्तेज होते

एक बाना झूठ पहने

शब्द आँसू से भिगोते

बिलखते हैं कुलबुला कर

और रोते हैं करुण हो।।


भावना में छल नहीं हो

तो कवित फिर क्यों कलंकित

जब फफोले फूटते हो

लेखनी से घाव अंकित

आज उड़ना चाहती है

रोध सारे ही धरुण हो।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

23 comments:

  1. क्या बात है प्रिय कुसुम4बहन!सच में जो आत्मा से निसृत हो,कल कल नदिया सी बहे,वही है असली कविता।बंधनों में इसका सौंदर्य क्षीण पड़ जाता है और भाव धूमिल पड़ जाते हैं।मैं भी छन्दमुक्त कविता की पक्षधर हूँ।कविता के आत्मकथ्य को शब्दों में साकार करती रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं 🙏❤

    ReplyDelete
    Replies
    1. भावों को समर्थन देती सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन सशक्त हुआ रेणु बहन, आपकी गहन विस्तृत टिप्पणी सदा किसी भी सृजन को विशेष बना देती है।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  2. अनमोल पँक्तियाँ 👌👌👌👌🙏
    बंधनों में भाव मेरे

    प्राण से निस्तेज होते
    एक बाना झूठ पहने
    शब्द आँसू से भिगोते
    बिलखते हैं कुलबुला कर
    और रोते हैं करुण हो।।//
    🙏❤

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका रेणु बहन मैं अभिभूत हूँ।
      सस्नेह।

      Delete
  3. बहुत बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

      Delete
  4. लेखनी निर्बाध दौड़े

    सिंधु उर्मिल सा वरुण हो।।

    सत्य के प्रति आग्रह और स्वातंत्र्य की यही पुकार तो हर आत्मा को धकेलती है आगे और आगे, सुंदर सृजन!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुंदर सारगर्भित गहन टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ अनिता जी ।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  5. वाह कुसुम जी,
    आपके गीतों में पहाडी नदी सा प्रवाह होता है और भाव-सौन्दर्य भी अनूठा होता है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन समृद्ध हुआ आदरणीय।
      सादर आभार आपका।

      Delete
  6. वाह सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका सरिता जी आपकी प्रतिक्रिया के साथ उपस्थिति मन को हर्ष से भर रही है ।
      सस्नेह आभार आपका,सदा स्नेह बनाए रखें।

      Delete
  7. न बांधों इनको बेड़ियों में
    वात सा आजाद छोड़ो
    श्वास लेने दो सहज सी
    खिड़कियों के पाट मोड़ो
    लेखनी निर्बाध दौड़े
    सिंधु उर्मिल सा वरुण हो।
    अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह आभार।

      Delete
  8. कमाल की रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय, उत्साह वर्धन करती विशिष्ट प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  9. 'वात सा आजाद छोड़ो

    श्वास लेने दो सहज सी' -सुन्दर भाव

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
      सस्नेह।

      Delete
  10. एक एक पंक्ति मन में उतर गई ।
    बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना ।
    बधाई आपको ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  11. हृदय से आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए,यह सदा सुखद एहसास है। मैं चर्चा मैं उपस्थित रहूंगी।
    सादर सस्नेह।

    ReplyDelete
  12. भावना में छल नहीं हो

    तो कवित फिर क्यों कलंकित

    जब फफोले फूटते हो

    लेखनी से घाव अंकित

    आज उड़ना चाहती है

    रोध सारे ही धरुण हो।।
    निश्छल भाव ही कविता का रूप पाते है
    बहुत ही लाजवाब हमेशा की तरह..
    वाह!!!

    ReplyDelete
  13. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
    सस्नेह।

    ReplyDelete