कविता को मुक्ति
हाँ ये मन पुकारता है
भाव मेरे चिर तरुण हो
हो स्वछंद पाखी सरिखे
ज्यों गगन विचरे अरुण हो।
न बांधों इनको बेड़ियों में
वात सा आजाद छोड़ो
श्वास लेने दो सहज सी
खिड़कियों के पाट मोड़ो
लेखनी निर्बाध दौड़े
सिंधु उर्मिल सा वरुण हो।।
बंधनों में भाव मेरे
प्राण से निस्तेज होते
एक बाना झूठ पहने
शब्द आँसू से भिगोते
बिलखते हैं कुलबुला कर
और रोते हैं करुण हो।।
भावना में छल नहीं हो
तो कवित फिर क्यों कलंकित
जब फफोले फूटते हो
लेखनी से घाव अंकित
आज उड़ना चाहती है
रोध सारे ही धरुण हो।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
क्या बात है प्रिय कुसुम4बहन!सच में जो आत्मा से निसृत हो,कल कल नदिया सी बहे,वही है असली कविता।बंधनों में इसका सौंदर्य क्षीण पड़ जाता है और भाव धूमिल पड़ जाते हैं।मैं भी छन्दमुक्त कविता की पक्षधर हूँ।कविता के आत्मकथ्य को शब्दों में साकार करती रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं 🙏❤
ReplyDeleteभावों को समर्थन देती सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन सशक्त हुआ रेणु बहन, आपकी गहन विस्तृत टिप्पणी सदा किसी भी सृजन को विशेष बना देती है।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
अनमोल पँक्तियाँ 👌👌👌👌🙏
ReplyDeleteबंधनों में भाव मेरे
प्राण से निस्तेज होते
एक बाना झूठ पहने
शब्द आँसू से भिगोते
बिलखते हैं कुलबुला कर
और रोते हैं करुण हो।।//
🙏❤
हृदय से आभार आपका रेणु बहन मैं अभिभूत हूँ।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteसादर।
लेखनी निर्बाध दौड़े
ReplyDeleteसिंधु उर्मिल सा वरुण हो।।
सत्य के प्रति आग्रह और स्वातंत्र्य की यही पुकार तो हर आत्मा को धकेलती है आगे और आगे, सुंदर सृजन!
सुंदर सारगर्भित गहन टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ अनिता जी ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
वाह कुसुम जी,
ReplyDeleteआपके गीतों में पहाडी नदी सा प्रवाह होता है और भाव-सौन्दर्य भी अनूठा होता है.
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन समृद्ध हुआ आदरणीय।
Deleteसादर आभार आपका।
वाह सुंदर रचना
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका सरिता जी आपकी प्रतिक्रिया के साथ उपस्थिति मन को हर्ष से भर रही है ।
Deleteसस्नेह आभार आपका,सदा स्नेह बनाए रखें।
न बांधों इनको बेड़ियों में
ReplyDeleteवात सा आजाद छोड़ो
श्वास लेने दो सहज सी
खिड़कियों के पाट मोड़ो
लेखनी निर्बाध दौड़े
सिंधु उर्मिल सा वरुण हो।
अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
हृदय से आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह आभार।
कमाल की रचना
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आदरणीय, उत्साह वर्धन करती विशिष्ट प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
'वात सा आजाद छोड़ो
ReplyDeleteश्वास लेने दो सहज सी' -सुन्दर भाव
जी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteसस्नेह।
एक एक पंक्ति मन में उतर गई ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना ।
बधाई आपको ।
हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
हृदय से आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए,यह सदा सुखद एहसास है। मैं चर्चा मैं उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteसादर सस्नेह।
भावना में छल नहीं हो
ReplyDeleteतो कवित फिर क्यों कलंकित
जब फफोले फूटते हो
लेखनी से घाव अंकित
आज उड़ना चाहती है
रोध सारे ही धरुण हो।।
निश्छल भाव ही कविता का रूप पाते है
बहुत ही लाजवाब हमेशा की तरह..
वाह!!!
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
ReplyDeleteसस्नेह।