मुद्रित यादें
जीवन की आपा धापी में
दूर देश छबि एक दिखी
साधन सीमित होते लेकिन
लोग हुआ करते स्वधिती।।
बाली की चौगान घनेरी
दादा की एक खटोली
श्याम खरल में घोटा चलता
जड़ी बूटियों की थैली
स्मृतियों की गुल्लक से निकली
मुद्रित यादें नाम लिखी।।
लम्बी तीखी मूँछ कटीली
ठसक भरी बोली बोले
लगा ठहाका ऐसे हँसते
ज्यूँ खनखन सिक्के तोले
बैठे दिखते घर चौबारे
मन भावों से जगत हिती।।
लकड़ी वाला चूल्हा चंचल
चटक-चटक जलता रहता
घूँघट डाले माँ काकी का
हाथ शीघ्र चलता रहता
सौंधी खुशबू वाली होती
रोटी भी अंगार सिकी।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteअति सुन्दर एवं मनोहारी कृति। सौंधी खुशबू बिखेरती हुई।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका अमृता जी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -०२ -२०२२ ) को
'का पर करूँ लेखन कि पाठक मोरा आन्हर !..'( चर्चा अंक -४३५५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका चर्चा में स्थान देने के लिए।
Deleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
माटी की सुंगध का
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गीत
बधाई
उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
लकड़ी वाला चूल्हा चंचल
ReplyDeleteचटक-चटक जलता रहता
घूँघट डाले माँ काकी का
हाथ शीघ्र चलता रहता
सौंधी खुशबू वाली होती
रोटी भी अंगार सिकी।
वाह!!!
बहुत ही खूबसूरत नजारा गाँव का पेश करता लाजवाब नवगीत।
लम्बी तीखी मूँछ कँटीली
कमाल का सृजन👌👌👏👏👏
मनोहर प्रतिक्रिया ने रचना को नव ऊर्जा से भर दिया सुधा जी ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
लकड़ी वाला चूल्हा चंचल
ReplyDeleteचटक-चटक जलता रहता
घूँघट डाले माँ काकी का
हाथ शीघ्र चलता रहता
सौंधी खुशबू वाली होती
रोटी भी अंगार सिकी।
बहुत ही खूबसूरत चित्रण किया है आपने गाँव का!
वैसे हमारे यहाँ गाँव में आज भी ऐसे दृश्य देखने को मिलतें हैं पर लोगों का नजरियाँ बदल गया लोग इसे खूबसूरत नहीं बल्कि ऐसे रहन सहन पर शर्म महसूस करते हैं गाँव के अधिकतर लोग शहर जैसी जीवनशैली पसंद करने लगे हैं! बहुत कम लोग ही बचे है जो ऐसी जीवनशैली को पसंद करते हैं! लेकिन ऐसी रचनाओं से थोड़ा परिवर्तन जरूर आएगा लोगों का नजरियाँ भी बदलेगा!
सस्नेह आभार आपका मनीषा , ये सचमुच बचपन की स्मृतियां हैं सरल सच्ची।
Deleteआपने सही कहा अब ऐसी जीवनशैली गाँव के लोग भी पसंद नहीं करते ।
बस जो सात्विक सरल था वो बस हृदय में अंकित है ।
सस्नेह आभार आपका सुंदर विस्तृत प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
लोकजीवन और बाबा दादी से जुड़ी स्मृतियां आनंद की अनुभूति के साथ टीस भी दे जाती हैं ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर,सराहनीय रचना ।
सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी मंथन करती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई। यादें टीस के साथ आनंद भी देती है ।
Deleteसपने सुहाने लड़कपन के।
सस्नेह।
हृदय से आभार आपका आलोक जी।
ReplyDeleteसादर।
सस्नेह आभार सखी, उत्साह वर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
ReplyDeleteसस्नेह।