Followers

Tuesday, 15 February 2022

आया बसंत हरि आओ ना


 आया बसंत मनभावन

हरि आओ ना। 


राधा हारी कर पुकार

हिय दहलीज पर बैठे हैं

निर्मोही नंद कुमार

कालिनी कूल खरी गाये

हरि आओ ना। 


फूल-फूल डोलत तितलियाँ

कोयल गाये मधु रागिनियाँ

मयूर पंखी भई उतावरी 

सजना चाहे भाल तुम्हारी

हरि आओ ना।


सतरंगी मौसम सुरभित 

पात-पात बसंत रंग छाय

गोप गोपियाँ सुध बिसराय 

सुनादो मुरली मधुर धुन आय

हरि आओ ना।


सृष्टि सजी कर श्रृंगार

कदंब डार पतंगम डोराय

धरणी भई मोहनी मन भाय

कुमदनी सेज सजाय। 

हरि आओ ना। 


    कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

32 comments:

  1. बसंत का आगमन बाखूबी मनुहार ...
    प्रकृति जैसे खिल उठी हो ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी मोहक प्रतिक्रिया से लेखन खिल उठा।
      सादर आभार आपका।

      Delete
  2. राधा हारी कर पुकार

    हिय दहलीज पर बैठे हैं

    निर्मोही नंद कुमार

    कालिनी कूल खरी गाये

    हरि आओ ना।
    बसंत और सावन राधा-कृष्ण के बिना अधूरे से हैं
    समा बाँध देती है आपकी रचनाएं...प्रकृति के साथ जब राधाकृष्ण को जोड़ती हैं...बहुत ही मनभावन लाजवाब सृजन।
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुंदर स्वप्निल सी स्निग्ध टिप्पणी सुधा जी मन खुश हुआ।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  4. Replies
    1. हृदय से आभार आपका ज्योति बहन।
      सस्नेह।

      Delete
  5. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

      Delete
  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  7. वाह!दी बहुत बहुत ही सुंदर सृजन।

    सृष्टि सजी कर श्रृंगार
    कदंब डार पतंगम डोराय
    धरणी भई मोहनी मन भाय
    कुमदनी सेज सजाय।
    हरि आओ ना...भाव मन को छू गए। बहुत ही सुंदर।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता सुंदर प्रतिक्रिया से रचना को नव उर्जा मिली ।
      सस्नेह।

      Delete
  8. हाय ! प्रदूषण से भरे हमारे शहरों में ऐसा वसंत न तो अब देखने को मिलता है और न ही सुनने को !

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार आपका आदरणीय।
      ये तो द्वापर का बसंत है सर तब यमुना जी को पता तक नहीं था कि उनकी ये दुर्गति होगी।
      सादर।

      Delete
  9. बेहद खूबसूरत रचना सखी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका सखी।
      सस्नेह।

      Delete
  10. भक्ति और प्रेम के रस से भीगी सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी आपकी सार्थक टिप्पणी से रचना प्रवाहित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  11. फूल-फूल डोलत तितलियाँ

    कोयल गाये मधु रागिनियाँ

    मयूर पंखी भई उतावरी

    सजना चाहे भाल तुम्हारी
    भक्ति और प्रेम के रस से सराबोर बहुत ही खूबसूरत रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार आपका प्रिय मनीषा आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
      सस्नेह।

      Delete
  12. बसंत का चलचित्र सखी !
    आ ही जाएंगे अब हरि !

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका नुपुर जी, स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।
      राधा जी खुशी से झूम उठेगी आपके संदेश से।
      सस्नेह 😍

      Delete
  13. Replies
    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय दी आपकी उपस्थिति से रचना मुखरित हुई।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  14. हरि के इंतज़ार में राधा के तो न जाने कितने बसंत गुज़र गए । बहुत सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने संगीता जी पढ़ने में तो यही आया कि हरि एक बार गोकुल छोड़ ग्रे फिर नहीं आये वापस।
      सस्नेह आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  15. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका भारती जी ।
      सस्नेह।

      Delete
  16. जी हृदय से आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
    मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
    सादर।

    ReplyDelete