आया बसंत मनभावन
हरि आओ ना।
राधा हारी कर पुकार
हिय दहलीज पर बैठे हैं
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना।
फूल-फूल डोलत तितलियाँ
कोयल गाये मधु रागिनियाँ
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।
सतरंगी मौसम सुरभित
पात-पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियाँ सुध बिसराय
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।
सृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमदनी सेज सजाय।
हरि आओ ना।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बसंत का आगमन बाखूबी मनुहार ...
ReplyDeleteप्रकृति जैसे खिल उठी हो ...
जी मोहक प्रतिक्रिया से लेखन खिल उठा।
Deleteसादर आभार आपका।
राधा हारी कर पुकार
ReplyDeleteहिय दहलीज पर बैठे हैं
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना।
बसंत और सावन राधा-कृष्ण के बिना अधूरे से हैं
समा बाँध देती है आपकी रचनाएं...प्रकृति के साथ जब राधाकृष्ण को जोड़ती हैं...बहुत ही मनभावन लाजवाब सृजन।
वाह!!!
सुंदर स्वप्निल सी स्निग्ध टिप्पणी सुधा जी मन खुश हुआ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हृदय से आभार आपका पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
वाह!दी बहुत बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमदनी सेज सजाय।
हरि आओ ना...भाव मन को छू गए। बहुत ही सुंदर।
सादर
सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता सुंदर प्रतिक्रिया से रचना को नव उर्जा मिली ।
Deleteसस्नेह।
हाय ! प्रदूषण से भरे हमारे शहरों में ऐसा वसंत न तो अब देखने को मिलता है और न ही सुनने को !
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteये तो द्वापर का बसंत है सर तब यमुना जी को पता तक नहीं था कि उनकी ये दुर्गति होगी।
सादर।
बेहद खूबसूरत रचना सखी।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका सखी।
Deleteसस्नेह।
भक्ति और प्रेम के रस से भीगी सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनिता जी आपकी सार्थक टिप्पणी से रचना प्रवाहित हुई।
Deleteसस्नेह।
फूल-फूल डोलत तितलियाँ
ReplyDeleteकोयल गाये मधु रागिनियाँ
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
भक्ति और प्रेम के रस से सराबोर बहुत ही खूबसूरत रचना
सस्नेह आभार आपका प्रिय मनीषा आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
Deleteसस्नेह।
बसंत का चलचित्र सखी !
ReplyDeleteआ ही जाएंगे अब हरि !
बहुत बहुत आभार आपका नुपुर जी, स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
राधा जी खुशी से झूम उठेगी आपके संदेश से।
सस्नेह 😍
लाज़बाब
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आदरणीय दी आपकी उपस्थिति से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर सस्नेह।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहरि के इंतज़ार में राधा के तो न जाने कितने बसंत गुज़र गए । बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteसही कहा आपने संगीता जी पढ़ने में तो यही आया कि हरि एक बार गोकुल छोड़ ग्रे फिर नहीं आये वापस।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
सादर।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका भारती जी ।
Deleteसस्नेह।
जी हृदय से आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।