Saturday, 12 March 2022

पाटलों (गुलाबों) की नियति


 पाटलों की नियति 


स्थलकमल पर झिलमिलाई

ओस किरणों से लड़ी

पुष्प पातों सो रही थी

अब विदाई की घड़ी।


रूप भी है गंध मोहक

और मुख मृदु हास है

लिप्त बैठे सेज कंटक

भृंग डोले पास है

क्षण पलों की देह कोमल

लहलहा काया झड़ी।।


शाख फुनगी मुस्कुराया 

इक सजीला फूल जब

तोड़ने को हाथ बहका

चुभ गया लो शूल तब

पाटलों की पंखुड़ी फिर

खिलखिला कर हँस पड़ी।


कंट हैं रक्षक हमारे

है निरापद साथ भी

हाँ बिखरना दो दिनों में

कार्य या अकराथ भी

देव भालों पर चढ़े या

बिंध कर बनते लड़ी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

21 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (१३ -०३ -२०२२ ) को
    'प्रेम ...'(चर्चा अंक-४३६८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका।
      मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह ।

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  2. प्रकृति की खूबसूरत देन है गुलाब और उसके जीवनकाल को उतनी ही ख़ूबसूरती से आपने परिभाषित किया है ।आपका शब्द-विन्यास
    सदैव मनमोहक लगता है ।

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    Replies
    1. आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ मीना जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह आभार।

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  3. इस गुलाबी कृति की गंध मन में बस गई।

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    Replies
    1. आपकी मोहक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ अमृता जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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  4. Replies
    1. हृदय से आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी।

      Delete
  5. कंट हैं रक्षक हमारे

    है निरापद साथ भी

    हाँ बिखरना दो दिनों में

    कार्य या अकराथ भी

    देव भालों पर चढ़े या

    बिंध कर बनते लड़ी।।

    बहुत सुंदर और खिलते हुए भाव ।बहुत शुभकामनाएं सखी ।

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    Replies
    1. आपकी सार्थक टिप्पणी से लेखन प्रवाह मान हुआ जिज्ञासा जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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  6. फूलों की गरिमा और महिमा को जताती सुंदर पंक्तियाँ

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    Replies
    1. आपकी गरिमा मय टिप्पणी से लेखन मुखरित हुआ अनिता जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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  8. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दी।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर सस्नेह।

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  9. गुलाब की नियति का मर्मस्पर्शी वर्णन।

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    Replies
    1. सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  10. अति सुंदर रचना !!

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    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय, उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  11. हृदय से आभार आपका।
    मैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
    सादर ।

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  12. शाख फुनगी मुस्कुराया

    इक सजीला फूल जब

    तोड़ने को हाथ बहका

    चुभ गया लो शूल तब

    पाटलों की पंखुड़ी फिर

    खिलखिला कर हँस पड़ी।
    फूल और शूल की जोड़ी पर बने इस लाजवाब नवगीत के तो क्या कहने...
    बहुत ही लाजवाब।

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