चाय सुधा रस
उठ भगाना भूत आलस
और मन जाये बहल ये।।
आँच पर पानी बिठाया
एक चम्मच कूट अदरक
मुंह से भी भाप निकले
खोल आये जल्द मनलख
चाय के बिन अब कहाँ है
ठंड में जीवन सरल ये।।
बलवती ये सोम रस सी
गात में भर मोद देती
काँच रंगे पात्र में भर
हर घड़ी आमोद देती
इक तरह का है नशा पर
मधुरिमा बहती तरल ये।।
हर दिवस का राग प्यारा
मेहमानों को लुभाती
नाथ निर्धन भेद कैसा
रंग बैठक में जमाती
लाल काली दूधवाली
रूप इसका है अचल ये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
चाय का बहुत ही सुंदर गुणगान किया है आपने, कुसुम दी।
ReplyDeleteआपको पसंद आई ज्योति बहन।
Deleteमन खुश हुआ ।
सस्नेह।
बहुत प्यारा सृजन,जान डाल दी आपने चाय में,और पीने वाले को भी चाय से आलिंगन करवा दिया, आखिर चाय को भी बड़ा विरोध सहना पड़ रहा है,आजकल । हानि लाभ का हवाला देकर। चाय और चाय की केतली दोनों खुश होंगे आपकी कविता पढ़कर, मैं तो खुश हो गई 😀😀💐💐
ReplyDeleteआप खुश, चाय खुश मैं खुश चलिए चले आइये यूं ही एक दिन खुश होने हमारे साथ हमारे घर चाय के लिए मौसम भी है दस्तूर भी ।
Deleteसस्नेह आभार जिज्ञासा जी आपकी मनभावनी टिप्पणी चाय जैसा ही आनंद दे रही है ।
सस्नेह।
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ReplyDeleteबहुत बहुत मधुर
Deleteजी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteचाय के विषय बहुत सुन्दर बातें कही हैं आपने। चाय वाकई सुधारस ही तो है।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका रचना के भावों को समर्थन देने वाली प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteसादर।
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर
वाह!चाय वाह! गज़ब दी 👌
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा विषय है ज्यों अदरक और काली मिर्च का जायका...गज़ब 👌
सादर नमस्कार।
वाह! क्या बात है लगता है अदरक काली मिर्च उबल रही है और घर में खुशबु फैल रही है इतराके ।
Deleteआवो चाय पीते हैं साथज्ञसाथ।
सस्नेह ।
बलवती ये सोम रस सी
ReplyDeleteगात में भर मोद देती
काँच रंगे पात्र में भर
हर घड़ी आमोद देती
इक तरह का है नशा पर
मधुरिमा बहती तरल ये।।
वाह !! बहुत खूब आपकी लेखनी में आज चाय को भी जगह मिल गई,चाहे कुछ कहे लोग चाय ने तो सबके दिलों में घर बना ही लिया है,
चाय के चुस्की के साथ सादर नमन कुसुम जी
कामिनी जी ये चाय आज हर घर में राजरानी सी ठसक से रहती है, सच कहा आपने।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक सुंदर समीक्षा से चाय में शहद सा घुला गया ।
सस्नेह।
चाय, कैसे जीवन का अभिन्न अंग बन गई पता ही नहीं चला ! आज यदि कोई कहता है कि मैं चाय नहीं पीता तो लगता है जैसे वह किसी दूसरे ग्रह का वाशिंदा हो !
ReplyDeleteसही कहा आपने ,हर जगह घुसपैठ है इस प्रसिद्ध चर की।
Deleteजो नहीं पीता वो सचमुच मंगल ग्रह का वासिंदा है ।
सुंदर सटीक टिप्पणी।
सादर आभार।
तो आज कुसुम जी का मन अपने पाठकों को चाय पिलाने का बन गया। चाय-महिमा वही है जो आपने कविता के माध्यम से बताई है। मन तृप्त हो गया पढ़कर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी ,चाय महिमा पर आपके सुंदर समर्थन ने रचना को और प्रभावी बना दिया ।
Deleteसादर।
वाह कुसुम जी, चाय को इस मनमोहक तरीके से आप ही पेश कर सकती हैं। "आँच पर पानी बिठाया
ReplyDeleteएक चम्मच कूट अदरक
मुंह से भी भाप निकले
खोल आये जल्द मनलख
चाय के बिन अब कहाँ है
ठंड में जीवन सरल ये।।"---वाह
सादर आभार चर्चा में शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteसादर।
सच आँच पर पानी बिठाकर ही ये सृजन कर डाला था अलकनंदा जी ।
ReplyDeleteआपकी मोहक टिप्पणी ने चाय के स्वाद को और बढ़ा दिया कभी हो जाए एक एक कप साथ में ।
सस्नेह आभार।