क्लांत सूरज
दिन चला अवसान को अब
नील नभ पर स्वर्ण घेरा
काल क्यों रुकता भला कब
रात दिन का नित्य फेरा ।।
थक चुका था सूर्य चलकर
क्लांत मन ढलता कलेवर
ढ़ांकता कलजोट कंबल
सो गया आभा छुपाकर
ओढ़ता चादर तिमिरमय
सांझ का मध्यम अँधेरा।।
झिंगुरी हलचल मची है
दीप जलते घाट ऊपर
उड़ रहे जुगनू दमकते
शांत हो बैठा चराचर
लो निकोरा चाँद आया
व्योम पर अब डाल डेरा।।
हीर कणिका सा चमकता
कांति मय है तारिका दल
पेड़ पत्तो में छुपी जो
चातकी मन प्राण हलचल
दूर से निरखे प्रिया बस
चाव मिलने का घनेरा।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआलोक जी बहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteसादर।
वाह! बहुत सुंदर शब्द चित्र।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को उर्जा मिली।
सादर।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-7-21) को "प्राकृतिक सुषमा"(चर्चा अंक- 4131) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
मैं अभिभूत हूं कामिनी जी मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteचर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बहुत ही सुंदर शब्द चित्र।
ReplyDeleteसादर
स्नेह आभार आपका अनिता।
Deleteरचना को प्रवाह मिला ।
सस्नेह।
वाह
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
समय चक्र को उजागर करती खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका गगन जी , उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया रचना को प्रवाह देती सी।
Deleteसादर।
क्या बात है दी
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शब्द चित्र।
आपकी रचनाओं का शब्द विन्यास, भाव सौंदर्य निःशब्द कर जाती है सदैव।
सप्रेम
प्रणाम दी।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार श्वेता आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना के भाव और भी स्पष्ट हुए।
Deleteसस्नेह।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 21 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मैं अभिभूत हूं पम्मी जी मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteपाँच लिंक में रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
झिंगुरी हलचल मची है
ReplyDeleteदीप जलते घाट ऊपर
उड़ रहे जुगनू दमकते
शांत हो बैठा चराचर
लो निकोरा चाँद आया
व्योम पर अब डाल डेरा।।
अद्भुत रचना सखी।
बहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteरचना प्रवाहित हुई।
सस्नेह।
पेड़ पत्तो में छुपी जो
ReplyDeleteचातकी मन प्राण हलचल
दूर से निरखे प्रिया बस
चाव मिलने का घनेरा।। सुंदर और अनुपम सृजन।
बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी।
Deleteउत्साह वर्धन करती सार्थक प्रतिक्रिया।
सादर।
अहा , कितना सुंदर विवरण ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रण ।
जी बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया और आपका स्नेह सदा मिलता रहे ।
Deleteसादर सस्नेह।
दिन चला अवसान को अब
ReplyDeleteनील नभ पर स्वर्ण घेरा
काल क्यों रुकता भला कब
रात दिन का नित्य फेरा ।।
वाह!!मनमोहक भावाभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन ।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन को नव उर्जा मिलती है ।
Deleteऔर आंतरिक खुशी भी।
सस्नेह।
बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ, आपकी प्रतिक्रिया से।
सादर।
थक चुका था सूर्य चलकर
ReplyDeleteक्लांत मन ढलता कलेवर
ढ़ांकता कलजोट कंबल
सो गया आभा छुपाकर
ओढ़ता चादर तिमिरमय
सांझ का मध्यम अँधेरा।।
बहुत ही उम्दा रचना और शब्दों का बेहतरीन चयन!
बहुत बहुत सा स्नेह आभार मनीषा जी।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ ।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मनोज जी।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
बहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका प्रसन्नवदन जी।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
हीर कणिका सा चमकता
ReplyDeleteकांति मय है तारिका दल
पेड़ पत्तो में छुपी जो
चातकी मन प्राण हलचल
दूर से निरखे प्रिया बस
चाव मिलने का घनेरा।।
वाह!!!!
बहुत ही मनमोहक शब्दचित्रण
अद्भुत बिम्ब एवं लाजवाब व्यंजनाएं
वाह वाह...
आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से स्वयं को फिर से पढ़ने का मन बना जाता है ।
Deleteगहराई से हर शब्द पर आपकी दृष्टि सदा रचना को नव आयाम देती है।
स्नेह आभार सुधा जी।
सस्नेह।
एक सुंदर पेशकश आपकी आदरणीय ।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत ही सुन्दर कृति
ReplyDeleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
झिंगुरी हलचल मची है
ReplyDeleteदीप जलते घाट ऊपर
उड़ रहे जुगनू दमकते
शांत हो बैठा चराचर
लो निकोरा चाँद आया
व्योम पर अब डाल डेरा।।
वाह ! अनुपम ! हर छंद लाजवाब है। गेयता ने रचना को और भी मधुर व मनमोहक बना दिया।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी कुशल लेखनी से निकले उद्गार मुझे अभिभूत कर गये ।
Deleteसस्नेह आभार पुनः।
वाह ! सुंदर मधुरमय काव्य,आनंद आ गया।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा सी आपका आनंद हमारा उपहार है, प्रतिदान है रचना का ।
Deleteसस्नेह।