ये रजत बूंटो से सुसज्जित नीलम सा आकाश,
ज्यों निलांचल पर हीर कणिकाएं जडी चांदी तारों में,
फूलों ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के,
आई चंद्रिका इठलाती पसरी लतिका के बिस्तर में।
विधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है,
भिगोता सरसी हरित धरा को निज चपल चाँदनी में ।
स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में।
जाते-जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में ।
ये रात है या सौगात है अनुपम कोई कुदरत की,
जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे विश्व आंगन में।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आप हमेशा प्राकृति को बाखूबी शब्दों में उतार देती हैं ... कल्पनाओं को आकार दे देती हैं जो दिल से सीधे संवाद करते हैं ...
ReplyDeleteअभिभूत हूं आपकी स्नेहिल मोहक प्रतिक्रिया से ।
Deleteलेखन को उत्साहित करती उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन दी सराहना से परे।
ReplyDeleteप्रकृति पर आपका सृजन जीवंत हो उठता है।
समझ नहीं आरहा कौन सा बंद उठाऊं एक से बढ़कर एक।
बेहतरीन 👌
बहुत बहुत सा आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सदा मुझे नव उर्जा मिलती है ।
Deleteउत्साह समाहित करती सुंदर प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
फूलों ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के,
ReplyDeleteआई चंद्रिका इठलाती पसरी लतिका के बिस्तर में।
बहुत ही सुंदर सृजन l
जी बहुत बहुत आभार आपका, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन को नव को उर्जा मिली।
Deleteसादर।
वाह .....बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार दी आपका आशीर्वाद मिला।
Deleteसादर सस्नेह।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteप्रकृति के सुंदर दृश्य को चित्रमय कर दिया आपने।बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिलता है।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
अद्भुत कुसुम जी क्या खूब लिखा है विशुद्ध हिंदी कविता पढ़कर मन तृप्त हुआ....
ReplyDelete"स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में।
जाते-जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में ।" वाह
बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी, आपकी भावभीनी प्रतिक्रिया सदा मन मोहती है ।
Deleteसस्नेह।
अति सुंदर
ReplyDeleteपढ़कर आनद आ गया
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
वाह अत्यंत सुन्दर प्राकृतिक वर्णन!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर सस्नेह।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका सखी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका जेन्नी जी , आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
ReplyDeleteसादर सस्नेह।
जी मैं उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होना सदा गर्व का विषय है।
सादर सस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteसादर।
नैनाभिराम !
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