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Thursday, 1 July 2021

हीर कणिकााएं


हीर कणिकााएं
 

ये रजत बूंटो से सुसज्जित नीलम सा आकाश,

ज्यों निलांचल पर हीर कणिकाएं जडी चांदी तारों में,


फूलों  ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के,

आई चंद्रिका इठलाती पसरी लतिका के बिस्तर में।


विधु का कैसा रुप मनोहर तारों जडी पालकी है,

भिगोता सरसी हरित धरा को निज चपल चाँदनी में ।


स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में।

जाते-जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में ।


ये रात है या सौगात है अनुपम  कोई कुदरत की,

जादू जैसा तिलिस्म फैला सारे  विश्व आंगन में।।


              कुसुम कोठारी  'प्रज्ञा'

25 comments:

  1. आप हमेशा प्राकृति को बाखूबी शब्दों में उतार देती हैं ... कल्पनाओं को आकार दे देती हैं जो दिल से सीधे संवाद करते हैं ...

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    1. अभिभूत हूं आपकी स्नेहिल मोहक प्रतिक्रिया से ।
      लेखन को उत्साहित करती उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  2. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन दी सराहना से परे।
    प्रकृति पर आपका सृजन जीवंत हो उठता है।
    समझ नहीं आरहा कौन सा बंद उठाऊं एक से बढ़कर एक।
    बेहतरीन 👌

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    1. बहुत बहुत सा आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सदा मुझे नव उर्जा मिलती है ।
      उत्साह समाहित करती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  3. फूलों  ने भी पहन लिये हैं वस्त्र किरण जाली के,

    आई चंद्रिका इठलाती पसरी लतिका के बिस्तर में।

    बहुत ही सुंदर सृजन l

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन को नव को उर्जा मिली।
      सादर।

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  4. वाह .....बहुत सुन्दर रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार दी आपका आशीर्वाद मिला।
      सादर सस्नेह।

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  5. बहुत सुंदर।

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  6. प्रकृति के सुंदर दृश्य को चित्रमय कर दिया आपने।बहुत सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिलता है।
      सस्नेह।

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  7. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  8. अद्भुत कुसुम जी क्‍या खूब ल‍िखा है व‍िशुद्ध ह‍िंदी कव‍िता पढ़कर मन तृप्‍त हुआ....

    "स्नान करने उतरा हो ज्यों निर्मल शांत झील में।

    जाते-जाते छोड़ गया कुछ अंश अपना पानी में ।" वाह

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी, आपकी भावभीनी प्रतिक्रिया सदा मन मोहती है ।
      सस्नेह।

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  9. अति सुंदर
    पढ़कर आनद आ गया

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  10. वाह अत्यंत सुन्दर प्राकृतिक वर्णन!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर सस्नेह।

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  11. बहुत सुंदर रचना

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    1. सस्नेह आभार आपका सखी।

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  12. बहुत बहुत आभार आपका जेन्नी जी , आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
    सादर सस्नेह।

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  13. जी मैं उपस्थित रहूंगी।
    चर्चा में शामिल होना सदा गर्व का विषय है।
    सादर सस्नेह।

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  14. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
    सादर।

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