मौसम
गंध लेकर पुष्प महके
आ गया मौसम सुहाना
बोल बोले भृंग भोले
कोकिला गाती तराना।।
कल्पना में तीर यमुना
श्याम का आनन सलौना
राधिका थी मानिनी सी
बांसुरी का इक खिलौना
साथ हरि सब नाचते थे
प्रीत का अनुपम खजाना ।।
भूल बैठे उस समय को
गागरी पर साज बजता
बालु के शीतल तटों पर
मंडली का कल्प सजता
चाँद की उजली चमक में
झूम उठता मन दिवाना।।
कंठ से सरगम मचलती
ताल लय सुर भी महकते
कुछ क्षणों में नव सृजन के
भाव मधुरस बन बहकते
आज मुखड़ा ढूँढता है
गीत अपना ही पुराना।।
कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना |हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteउत्साह वर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
सादर।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (12-07-2021 ) को 'मानसून जो अब तक दिल्ली नहीं पहुँचा है' (चर्चा अंक 4123) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी अवश्य।
Deleteचर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर।
सुन्दर सृजन...
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसादर।
ReplyDeleteकंठ से सरगम मचलती
ताल लय सुर भी महकते
कुछ क्षणों में नव सृजन के
भाव मधुरस बन बहकते
आज मुखड़ा ढूँढता है
गीत अपना ही पुराना..सुंदर सटीक अभिव्यक्ति, सच में हम हमेशा बीते हुए जीवन की स्मृतियों मे ही डूबना चाहते हैं,पर कहां संभव है,सुंदर मोहक सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मन में नव सृजन की प्रेरणा देता है।
सस्नेह।
गहन रचना---
ReplyDeleteसादर आभार आपका, भाव पक्ष पर विहंगम दृष्टि से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर।
कंठ से सरगम मचलती
ReplyDeleteताल लय सुर भी महकते
कुछ क्षणों में नव सृजन के
भाव मधुरस बन बहकते
आज मुखड़ा ढूँढता है
गीत अपना ही पुराना।। वाह बेहतरीन सृजन सखी।
बहुत बहुत आभार आपका सखी आपकी मन भावन प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteसस्नेह।
कंठ से सरगम मचलती
ReplyDeleteताल लय सुर भी महकते
कुछ क्षणों में नव सृजन के
भाव मधुरस बन बहकते
आज मुखड़ा ढूँढता है
गीत अपना ही पुराना...वाह!बेहतरीन सृजन दी।
सादर
बहुत बहुत सा स्नेह आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई,और लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ।
Deleteस्नेह आभार।
अद्भुत ! लयबद्धता के साथ सुंदर शब्दशिल्प।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी ।
Deleteउर्जा वान प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
भूल बैठे उस समय को
ReplyDeleteगागरी पर साज बजता
बालु के शीतल तटों पर
मंडली का कल्प सजता
पूरानी यादे को ताजा करती बेहतरीन कविता.
बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
बहुत खूब , अच्छी रचना !
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
सुहाने मौसम की महक सबको महका देती है ...
ReplyDeleteजीवन खिल्जता है मौसम सा ...
बहुत लाजवाब ...
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन करती सार्थक प्रतिक्रिया।
सादर।
हाय! इस मधुरस भाव में सब-कुछ बहा जा रहा है । अनुपम कृति ।
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