Wednesday, 21 July 2021

चाय सुधा रस


 चाय सुधा रस


उठ भगाना भूत आलस

और मन जाये बहल ये।।


आँच पर पानी बिठाया

एक चम्मच कूट अदरक

मुंह से भी भाप निकले

खोल आये जल्द मनलख

चाय के बिन अब कहाँ है

ठंड में जीवन सरल ये।।


बलवती ये सोम रस सी

गात में भर मोद देती

काँच रंगे पात्र में भर

हर घड़ी आमोद देती

इक तरह का है नशा पर

मधुरिमा बहती तरल ये‌।।


हर दिवस का राग प्यारा

मेहमानों को लुभाती

नाथ निर्धन भेद कैसा

रंग बैठक में जमाती

लाल काली दूधवाली

रूप इसका है अचल ये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

22 comments:

  1. चाय का बहुत ही सुंदर गुणगान किया है आपने, कुसुम दी।

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    1. आपको पसंद आई ज्योति बहन।
      मन खुश हुआ ।
      सस्नेह।

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  2. बहुत प्यारा सृजन,जान डाल दी आपने चाय में,और पीने वाले को भी चाय से आलिंगन करवा दिया, आखिर चाय को भी बड़ा विरोध सहना पड़ रहा है,आजकल । हानि लाभ का हवाला देकर। चाय और चाय की केतली दोनों खुश होंगे आपकी कविता पढ़कर, मैं तो खुश हो गई 😀😀💐💐

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    1. आप खुश, चाय खुश मैं खुश चलिए चले आइये यूं ही एक दिन खुश होने हमारे साथ हमारे घर चाय के लिए मौसम भी है दस्तूर भी ।
      सस्नेह आभार जिज्ञासा जी आपकी मनभावनी टिप्पणी चाय जैसा ही आनंद दे रही है ।
      सस्नेह।

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    1. बहुत बहुत मधुर

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    2. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।

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  4. चाय के विषय बहुत सुन्दर बातें कही हैं आपने। चाय वाकई सुधारस ही तो है।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका रचना के भावों को समर्थन देने वाली प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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  5. बहुत ही सुंदर

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर

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  6. वाह!चाय वाह! गज़ब दी 👌
    बहुत ही प्यारा विषय है ज्यों अदरक और काली मिर्च का जायका...गज़ब 👌
    सादर नमस्कार।

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    1. वाह! क्या बात है लगता है अदरक काली मिर्च उबल रही है और घर में खुशबु फैल रही है इतराके ।
      आवो चाय पीते हैं साथज्ञसाथ।
      सस्नेह ।

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  7. बलवती ये सोम रस सी

    गात में भर मोद देती

    काँच रंगे पात्र में भर

    हर घड़ी आमोद देती

    इक तरह का है नशा पर

    मधुरिमा बहती तरल ये‌।।

    वाह !! बहुत खूब आपकी लेखनी में आज चाय को भी जगह मिल गई,चाहे कुछ कहे लोग चाय ने तो सबके दिलों में घर बना ही लिया है,
    चाय के चुस्की के साथ सादर नमन कुसुम जी

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    1. कामिनी जी ये चाय आज हर घर में राजरानी सी ठसक से रहती है, सच कहा आपने।
      आपकी उत्साहवर्धक सुंदर समीक्षा से चाय में शहद सा घुला गया ।
      सस्नेह।

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  8. चाय, कैसे जीवन का अभिन्न अंग बन गई पता ही नहीं चला ! आज यदि कोई कहता है कि मैं चाय नहीं पीता तो लगता है जैसे वह किसी दूसरे ग्रह का वाशिंदा हो !

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    1. सही कहा आपने ,हर जगह घुसपैठ है इस प्रसिद्ध चर की।
      जो नहीं पीता वो सचमुच मंगल ग्रह का वासिंदा है ।
      सुंदर सटीक टिप्पणी।
      सादर आभार।

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  9. तो आज कुसुम जी का मन अपने पाठकों को चाय पिलाने का बन गया। चाय-महिमा वही है जो आपने कविता के माध्यम से बताई है। मन तृप्त हो गया पढ़कर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी ,चाय महिमा पर आपके सुंदर समर्थन ने रचना को और प्रभावी बना दिया ।
      सादर।

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  10. वाह कुसुम जी, चाय को इस मनमोहक तरीके से आप ही पेश कर सकती हैं। "आँच पर पानी बिठाया

    एक चम्मच कूट अदरक

    मुंह से भी भाप निकले

    खोल आये जल्द मनलख

    चाय के बिन अब कहाँ है

    ठंड में जीवन सरल ये।।"---वाह

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  11. सादर आभार चर्चा में शामिल करने के लिए।
    सादर।

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  12. सच आँच पर पानी बिठाकर ही ये सृजन कर डाला था अलकनंदा जी ।
    आपकी मोहक टिप्पणी ने चाय के स्वाद को और बढ़ा दिया कभी हो जाए एक एक कप साथ में ।
    सस्नेह आभार।

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