Sunday, 25 July 2021

तिमिर के पार जिजीविषा


 तिमिर के पार जिजीविषा 


दूर तिमिर के पार 

एक आलौकिक 

ज्योति-पुंज है।

एक ऐसा उजाला

जो हर तमस  पर भारी है।

अनंत सागर में फंसी

नैया हिचकोले खाती है।

दूर-दूर तक कहीं 

प्रतीर नजर नहीं आते हैं।

प्यासा नाविक 

नीर की बूँद को तरसता है‌।

घटाएँ घनघोर

पानी अब बरसने को 

विकल है ।

अभी सैकत से अधिक

अम्बू की चाहत है।

पानी न मिला तो प्राणों का

अविकल गमन है।

प्राण रहे तो किनारे 

जाने का युद्ध अनवरत है।

लो बरस गई बदरी

सुधा बूँद सी शरीर में दौड़ी है ।

प्रकाश की ओर जाने की

अदम्य प्यास जगी  है ‌

हाथों की स्थिलता में 

अब ऊर्जा  का संचार है।

समझ नहीं आता प्यास बड़ी थी

या जीवन बड़ा है।

तृषा बुझते ही 

फिर जीवन के लिये संग्राम शुरू है।

आखिर वो तमिस्त्रा के

उस पार कौन सी प्रभा है  

और ये कैसी जिजीविषा है।।


       कुसुम कोठारी।

28 comments:

  1. समझ नही आता प्यास बड़ी थी
    या जीवन बड़ा है।
    तृषा बुझते ही
    फिर जीवन के लिये संग्राम शुरू है।
    ---------------------------
    वाह क्या बात है? बहुत खूब।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर

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  2. तृषा बुझते ही

    फिर जीवन के लिये संग्राम शुरू है।

    आखिर वो तमिस्त्रा के

    उस पार कौन सी प्रभा है

    और ये कैसी जिजीविषा है,मननशील सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, एक गूढ़ विषय पर आपकी विहंगम दृष्टि रचना को सार्थकता दे गई
      सस्नेह आभार आपका।

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  3. अप्रतिम रचना प्रिय कुसुम।

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    1. ढेर सा आभार आपका आदरणीय दी,आपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  4. सुंदर शब्द संयोजन।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।
      आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  5. बहुत बढिया प्रिय कुसुम बहन !आपके काव्य चित्र निशब्द कर जाते हैं !!!!!!!!
    साधारण व्यक्ति की सोच इस बिंदु को छू भी नहीं सकती |विद्वात्पूर्ण लेखन की ये पंक्तियाँ निशब्द कर गयीं

    समझ नहीं आता प्यास बड़ी थी ///या जीवन बड़ा है।/तृषा बुझते ही
    फिर जीवन के लिये संग्राम शुरू है।///
    उम्दा लेखन के लिए ढेरों शुभकामनाएं|

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रेणु बहन,मैं सचमुच अभिभूत हूं इतना स्नेह और खुलकर सराहना ।
      आपकी उत्साहवर्धक, विस्तृत प्रतिक्रिया और आपकी दिल खोलकर प्रशंसा ने मेरी लेखनी में नवीन उर्जा का संचार किया है ।
      सस्नेह।

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  6. अनंत सागर में फंसी

    नैया हिचकोले खाती है।

    दूर-दूर तक कहीं

    प्रतीर नजर नहीं आते हैं।
    बेहतरीन रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मनीषा जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  7. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
    सादर।

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  8. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
    सादर।

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  9. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३१-०७-२०२१) को
    'नभ तेरे हिय की जाने कौन'(चर्चा अंक- ४१४२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका चर्चा पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  10. आखिर वो तमिस्त्रा के
    उस पार कौन सी प्रभा है
    और ये कैसी जिजीविषा है।
    जीवन चक्र के मार्ग पर प्रकाश डालता गहन चिंतन कुसुम जी!
    अद्भुत और अप्रतिम सृजन ।

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    1. जी मीना जी गहन दृष्टि से रचना पल्लवित हुई, लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह आभार आपका।

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  11. दूर तिमिर के पार
    एक आलौकिक
    ज्योति-पुंज है।
    भवसागर में फँसी जीवन जीवन नैया उम्रभर हिचकोले खा रही है
    प्रकाश की ओर जाने की
    अदम्य प्यास जगी है ‌....
    आते तो उस प्रकाश पुँज की चाहत लेकर ही हैं उसी की प्यास में जीते भी हैं पर सचमुच समझ नहीं आता कि जीवन से इतना मोह कब हो जाता है कि उस प्रकाशपुंज को भूल ही जाते हैं शायद तमिस्त्रा के भर से....।
    बहुत ही मननशील लाजवाब सृजन।

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    1. सुधाजी आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया से रचना में निहित भाव खुलकर बोलने लगते हैं।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  12. आखिर वो तमिस्त्रा के

    उस पार कौन सी प्रभा है

    और ये कैसी जिजीविषा है।।गहनतम सृजन...।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  13. यही जिजीविषा तो सृष्टि का आधार है जो संचित, पल्लवित और पुष्पित होता रहता है । अत्यंत गूढ़ एवं परिमार्जित सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।

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    1. जी सही कहा आपने ,रचना के भावों पर गहन दृष्टि के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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    1. जी सादर आभार आपका।
      उत्साह वर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
      सादर।

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  15. सार्थक प्रश्न सुन्दर रचना।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका।
      उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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