अस्तित्व और अस्मिता बचाने की लडाई
खूब लडो जुझारू हो कर लड़ो
पर रुको सोचो ये सिर्फ अस्तित्व की लड़ाई है या चूकते जा रहे संस्कारों की प्रतिछाया...
जब दीमक लगी हो नीव मे
फिर हवेली कैसे बच पायेगी
नीव को खाते खाते
दिवारें हिल जायेगी
एक छोटी आंधी भी
वो इमारत गिरायगी
रंग रौगन खूब करलो
कहां वो बच पायेगी।
नीड़ तिनकों के तो सुना
ढहाती है आंधियां
घरौंदे माटी के भी
तोडती है बारिशें
संस्कारों की जब
टूटती है डोरिया
उन कच्चे धागों पर कैसे
शामियाने टिक पायेंगे।
समय ही क्या बदला है
या हम भी हैं बदले बदले
नारी महान है माना
पर रावण, कंस भी पोषती है
सीता और द्रोपदी
क्या इस युग की बात है
काल चक्र मे सदा ही
विसंगतियां पनपती है।
पर अब तो दारुण दावानल है
जल रहा समाज जलता सदाचरण है
क्या होगा अंत गर ये शुरूआत है
केशव तो नही आयेंगे ये निश्चित है
कुछ ढूंढना होगा इसी परिदृश्य मे
अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा।
कुसुम कोठारी।
खूब लडो जुझारू हो कर लड़ो
पर रुको सोचो ये सिर्फ अस्तित्व की लड़ाई है या चूकते जा रहे संस्कारों की प्रतिछाया...
जब दीमक लगी हो नीव मे
फिर हवेली कैसे बच पायेगी
नीव को खाते खाते
दिवारें हिल जायेगी
एक छोटी आंधी भी
वो इमारत गिरायगी
रंग रौगन खूब करलो
कहां वो बच पायेगी।
नीड़ तिनकों के तो सुना
ढहाती है आंधियां
घरौंदे माटी के भी
तोडती है बारिशें
संस्कारों की जब
टूटती है डोरिया
उन कच्चे धागों पर कैसे
शामियाने टिक पायेंगे।
समय ही क्या बदला है
या हम भी हैं बदले बदले
नारी महान है माना
पर रावण, कंस भी पोषती है
सीता और द्रोपदी
क्या इस युग की बात है
काल चक्र मे सदा ही
विसंगतियां पनपती है।
पर अब तो दारुण दावानल है
जल रहा समाज जलता सदाचरण है
क्या होगा अंत गर ये शुरूआत है
केशव तो नही आयेंगे ये निश्चित है
कुछ ढूंढना होगा इसी परिदृश्य मे
अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा।
कुसुम कोठारी।
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteएक विषय पर कितना विविधता पूर्ण लेखन करती है आप।
बहुत बढ़िया हर रचना लाजवाब।
आपका स्नेह अमूल्य है मेरे लिये ढेर सारा आभार।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/05/68.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteप्रिय कुसुम जी -- मंच पर आपका पखर लेखन अलग दिखता है | कई बार तो निशब्द हो जाती हूँ | आज भी कुछ इसी तरह की स्थिति है सचमुच बड़ी विकट स्थितियों का सामना करती नारी के अस्तित्व पर संकट है | संस्कारों पर संकट की ऐसी भयावह बेला कभी ना थी जब दुधमुंही बच्चियों को भी प्रोढ़ा समझ उनपे दुराचार जैसी घटनाएँ सामने आ रही हैं |-- सचमुच आज कोई मसीहा नहीं आयेगा बचाने -- अस्मिता की लड़ाई हमें खुद लडनी होगी अपने बूते पर | इस ओज भरी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई देती हूँ | -- ये पंक्तियाँ विशेष उल्लेखनीय और सार्थक हैं ---केशव तो नही आयेंगे ये निश्चित है
ReplyDeleteकुछ ढूंढना होगा इसी परिदृश्य मे
अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा।
सस्नेह -- -------------
सस्नेह आभार रेणू बहन आपका विशेष प्रेम है आप एक उम्दा रचनाकारा है आप का लेखन बहुत रचनात्मक होता है आप जैसे रचनाकारों से सराहना मिलते ही रचना सार्थक लगने लगती है और आपने तो सबसे गूढ़ पंक्तियाँ पकड कर सार बता दिया।
Deleteपुनः आभार।
बहुत ही शानदार
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteपर अब तो दारुण दावानल है
जल रहा समाज जलता सदाचरण है
क्या होगा अंत गर ये शुरूआत है
केशव तो नही आयेंगे ये निश्चित है
कुछ ढूंढना होगा इसी परिदृश्य मे
अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा... बहुत सुंदर और सटीक रचना सखी
अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
ReplyDeleteसंयम और संस्कारों को गढ़ना होगा।
वाह !! अप्रतिम भाव और चिन्तन लिए अत्यन्त प्रभावी सृजन 👌👌.