Followers

Monday, 30 April 2018

अस्तित्व

अस्तित्व और अस्मिता बचाने की लडाई
खूब लडो जुझारू हो कर लड़ो
पर रुको सोचो ये सिर्फ अस्तित्व की लड़ाई है या चूकते जा रहे संस्कारों की प्रतिछाया...

जब दीमक लगी हो नीव मे
फिर हवेली कैसे बच पायेगी
नीव को खाते खाते
दिवारें हिल जायेगी
एक छोटी आंधी भी
वो इमारत गिरायगी
रंग रौगन खूब करलो
कहां वो बच पायेगी।

नीड़ तिनकों के तो सुना
ढहाती है आंधियां
घरौंदे माटी के भी
तोडती है बारिशें
संस्कारों की जब
टूटती है डोरिया
उन कच्चे धागों पर कैसे
शामियाने  टिक पायेंगे।

समय ही क्या बदला है
या हम भी हैं बदले बदले
नारी महान है माना
पर रावण, कंस भी पोषती है
सीता और द्रोपदी
क्या इस युग की बात है
काल चक्र मे सदा ही
विसंगतियां पनपती है।

पर अब तो दारुण दावानल है
जल रहा समाज जलता सदाचरण है
क्या होगा अंत गर ये शुरूआत है
केशव तो नही आयेंगे ये निश्चित है
कुछ  ढूंढना होगा इसी परिदृश्य मे
अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा।
                कुसुम कोठारी।

10 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना
    एक विषय पर कितना विविधता पूर्ण लेखन करती है आप।
    बहुत बढ़िया हर रचना लाजवाब।

    ReplyDelete
  2. आपका स्नेह अमूल्य है मेरे लिये ढेर सारा आभार।

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/05/68.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  5. प्रिय कुसुम जी -- मंच पर आपका पखर लेखन अलग दिखता है | कई बार तो निशब्द हो जाती हूँ | आज भी कुछ इसी तरह की स्थिति है सचमुच बड़ी विकट स्थितियों का सामना करती नारी के अस्तित्व पर संकट है | संस्कारों पर संकट की ऐसी भयावह बेला कभी ना थी जब दुधमुंही बच्चियों को भी प्रोढ़ा समझ उनपे दुराचार जैसी घटनाएँ सामने आ रही हैं |-- सचमुच आज कोई मसीहा नहीं आयेगा बचाने -- अस्मिता की लड़ाई हमें खुद लडनी होगी अपने बूते पर | इस ओज भरी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई देती हूँ | -- ये पंक्तियाँ विशेष उल्लेखनीय और सार्थक हैं ---केशव तो नही आयेंगे ये निश्चित है
    कुछ ढूंढना होगा इसी परिदृश्य मे
    अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
    संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा।
    सस्नेह -- -------------

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार रेणू बहन आपका विशेष प्रेम है आप एक उम्दा रचनाकारा है आप का लेखन बहुत रचनात्मक होता है आप जैसे रचनाकारों से सराहना मिलते ही रचना सार्थक लगने लगती है और आपने तो सबसे गूढ़ पंक्तियाँ पकड कर सार बता दिया।
      पुनः आभार।

      Delete
  6. बहुत ही शानदार
    बेहतरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete

  7. पर अब तो दारुण दावानल है
    जल रहा समाज जलता सदाचरण है
    क्या होगा अंत गर ये शुरूआत है
    केशव तो नही आयेंगे ये निश्चित है
    कुछ ढूंढना होगा इसी परिदृश्य मे
    अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
    संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा... बहुत सुंदर और सटीक रचना सखी

    ReplyDelete
  8. अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
    संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा।
    वाह !! अप्रतिम भाव और चिन्तन लिए अत्यन्त प्रभावी सृजन 👌👌.

    ReplyDelete