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Thursday, 19 April 2018

सूरज का विश्राम

अपनी तपन से तपा
अपनी गति से थका
लेने विश्राम ,शीतलता
देखो भास्कर उतरा
सिन्धु प्रांगन मे
करने आलोल किलोल ,
सारी सुनहरी छटा
समेटे निज साथ
कर दिया सागर को
रक्क्तिम सुनहरी ,
शोभित सारा जल
नभ भूमण्डल
एक डुबकी ले
फिर नयनो से ओझल,
समाधिस्थ योगी सा
कर साधना पूरी
कल फिर नभ भाल को
कर आलोकित स्वर्ण रेख से
क्षितिज  का श्रृंगार करता
अंबर चुनर रंगता
आयेगा होले होले,
और सारे जहाँ  पर
कर आधिपत्य शान से
सुनहरी सात घोड़े का सवार
चलता मद्धम  गति से
हे उर्जामय नमन तूझे।
     कुसुम कोठारी।




13 comments:

  1. अति सुन्दर वर्णन सवितू कर्म का ...मीता

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  3. भास्कर समाधिस्थ योगी सा
    क्षितिज का श्रृंगार करता
    अम्बर चुनर रंगता
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर...
    लाजवाब

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  4. बहुत खूबसूरत रचना, सांझ का अति सुन्दर वर्णन 👏 👏 👏 वाह

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  5. बहुत खूबसूरत रचना, सांझ का अति सुन्दर वर्णन 👏 👏 👏 वाह

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  6. आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 15 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. भूल सुधार.. "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. वाह्हह दी लाज़वाब...आपके द्वारा खींचा गया शब्दचित्र बेहद खूबसूरत है। शब्द चयन तो क्या कहने..वाह्ह्ह👌👌

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  9. आदरणीय कुसुम दी
    इतनी सुन्दर शब्द रचना कि तपता सूर्य भी दिल में शीतलता महसूस कराता हुआ प्रतीत हो रहा है . बेहद खूबसूरत रचना
    सादर

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