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Sunday, 22 April 2018

कदम रुकने न पाए

कदम जब रुकने लगे तो
मन की बस आवाज सुन
गर तुझे बनाया विधाता ने
श्रेष्ठ कृति संसार मे तो
कुछ सृजन करने
होंगें तुझ को
विश्व उत्थान मे,
बन अभियंता करने होंगें
नव निर्माण
निज दायित्व को पहचान तूं
कैद है गर भोर उजली
हरो तम, बनो सूर्य
अपना तेज पहचानो
विघटन नही,
जोडना है तेरा काम
हीरे को तलाशना हो तो
कोयले से परहेज
भला कैसे करोगे
आत्म ज्ञानी बनो
आत्म केन्द्रित नही
पर अस्तित्व को जानो
अनेकांत का विशाल
मार्ग पहचानो
जियो और जीने दो,
मै ही सत्य हूं ये हठ है
हठ योग से मानवता का
विध्वंस निश्चित है
समता और संयम
दो सुंदर हथियार है
तेरे पास बस उपयोग कर
कदम रूकने से पहले
फिर चल पड़।
 कुसुम कोठारी।

5 comments:

  1. बहुत सार्थक रचना।
    बहुत ही प्रेरणादायक लिखा आप ने। सुन्दर !!!

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  2. डगमगाते कदमो को सम्भालती रणभूमि में खड़े अर्जुन सारथी बन पथ प्रदर्शित करती उत्क्रष्ट रचना 👌👌

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    1. वाह आंचल जी सारथी अद्भुत!!
      सारथी भी पार्थ के स्वयं केशव,अभिभूत 🙏

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  3. सादर आभार। भावों पर मजबूत पकड़।

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