एक यवनिका गिरने को है।
जो सोने सा दिख रहा वो
अब माटी का ढेर होने को है
लम्बे सफर पर चल पङा
नींद गहरी सोने को है।
एक यवनिका .....।.
जो समझा था सरुप अपना
वो सरुप अब खोने को है
अब जल्दी से उस घर जाना
जहाँ देह नही सिर्फ़ रूह है
एक यवनिका ....
डाल डाल जो फूदक रहा
वो पंक्षी कितना भोला है
घात लगाये बैठा बहेलिया
किसी पल बिंध जाना है ।
एक यवनिका .....
जो था खोया रंगरलियों मे
राग मोह मे फसा हुवा
मेरा मेरा कर जो मोहपास मे बंधा हुवा
आज अपनो के हाथों भस्म अग्नि मे होने को है ।
एक यवनिका ......
कुसुम कोठारी ।
जो सोने सा दिख रहा वो
अब माटी का ढेर होने को है
लम्बे सफर पर चल पङा
नींद गहरी सोने को है।
एक यवनिका .....।.
जो समझा था सरुप अपना
वो सरुप अब खोने को है
अब जल्दी से उस घर जाना
जहाँ देह नही सिर्फ़ रूह है
एक यवनिका ....
डाल डाल जो फूदक रहा
वो पंक्षी कितना भोला है
घात लगाये बैठा बहेलिया
किसी पल बिंध जाना है ।
एक यवनिका .....
जो था खोया रंगरलियों मे
राग मोह मे फसा हुवा
मेरा मेरा कर जो मोहपास मे बंधा हुवा
आज अपनो के हाथों भस्म अग्नि मे होने को है ।
एक यवनिका ......
कुसुम कोठारी ।
वाह !!!बहुत सार्थक रचना। लाजवाब भाव।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सखी आपका समर्थन मिल गया रचना सार्थक हुई।
Deleteवाह वाह मीता ....मौत यवनिका का अनूठा संगम लिखा अति अति आभार समय रहते सिखा रही हो अब तो मनवा जाग !
ReplyDeleteबहुत सा आभार मीता रचना से सीख लेना भी आपकी एक विशिष्ट कला है नमन।
Deleteएक यवनिका गिरने को है।
ReplyDeleteजो सोने सा दिख रहा वो
अब माटी का ढेर होने को है
लम्बे सफर पर चल पङा
नींद गहरी सोने को है।
एक यवनिका .....।.
मेरा मेरा के भ्रमजाल में मुदित यात्रि को सचेत करती प्रेरक रचना। वाह वाह रचना। सुंदरतम दी जी। बहुत ही सुंदर थीम से सजा सार्थक रचनाओं से परिपूर्ण आपका ब्लॉग देखकर अत्यंत प्रसन्नता हुई। बहुत बहुत बधाइयाँ आपको। आपका ब्लॉग ख़ूब यश कमाये ऐसी शुभाकांक्षा है।
स्नेह आभार भाई आपको इतने आरसे बाद वो भी ब्लॉग फर ईतनी ढेर सी शुभकामनाओं के साथ देख मन प्रमुदित हुवा।
Deleteरचना को विवेचनात्मक समर्थन देती सुंदर सार्थक पंक्तियाँ पुनः स्नेह आभार।
वाहःह उम्दा
ReplyDeleteलोकेश जी बहुत सा आभार।
Deleteवाह अद्भुत अप्रतिम सुंदर रचना
ReplyDeleteहर मोह के धागे
अब खुलने को है
इस माया के पिंजरे से
मुक्त होने को है
परम रूह से मिलन
अद्भुत अब होने को है
एक परिंदा उड़ने को है
एक यवनिका गिरने को है
छू गयी आपकी रचना दीदी जी
वाह उम्दा 👌
वाह अद्भुत अपरिमित भावों का सुंदर काव्य मेरी रचना को समर्थन देता उसे आगे बढाता।
Deleteस्नेह आभार।
जैसे रंगमंच पर नाटक खत्म होने को हो तो पर्दा गिरने की क्रिया होती है, यानि पट्टाक्षेप या यवनिका का गिरना ठीक वैसे ही संसार रूपी रंगमंच पर जीवन रूपी नाट्य का पट्टाक्षेप हो तो ऐसा ही भान होता है या ये कहो कि ये शाश्वत है यवनिका गिरने वाली होती है तो हर चर प्राणी के लिये एक नियम सा है।
स्नेह भरा आभार।
अति सुन्दर ....,
ReplyDeleteमीना जी सादर आभार आपका। मेरे ब्लॉग पर आपको सप्रक्रिया के साथ देखना सुखद अनुभूति ।
Deleteजी सादर आभार मेरी रचना के लिये यह गर्व का पल है। मै मित्र मंडली पर जरूर आऊंगी।
ReplyDeleteपुनः आभार।
रंगमच के बहाने जीवन की नश्वरता को शब्दों में पिरोती रचना बाहुत खूब है | सचमुच रंगमंच सरीखा ही है जीबन | दृश्य कब पलट जाए पता नहीं चलता | सस्नेह
ReplyDeleteमेरा मेरा कर जो मोहपास मे बंधा हुवा
ReplyDeleteआज अपनो के हाथों भस्म अग्नि मे होने को है
जीवन की यही सच्चाई हैं ,बहुत ही गहरे भाव लिए अद्भुत रचना ,सादर नमन कुसुम जी
एक यवनिका गिरने को है।
ReplyDeleteजो सोने सा दिख रहा वो
अब माटी का ढेर होने को है
लम्बे सफर पर चल पङा
नींद गहरी सोने को है।
एक यवनिका .....।.
जो समझा था सरुप अपना
वो सरुप अब खोने को है
अब जल्दी से उस घर जाना
जहाँ देह नही सिर्फ़ रूह है
एक यवनिका ..... वाह !वाह !बेहतरीन सृजन दी
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति सखी।लाजवाब।
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