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Friday, 22 July 2022

गीतिका संभावनाएं.


 गीतिका 

संभावनाएं 

शासक स्वछंदी हो वहाँ प्रतिकार करना चाहिए।

उद्देश्य अपना लोक हित तो सत्य कहना चाहिए।।


बाधा न कोई रोक पाए यह अभी प्रण ठान लो।

जन हित करें उद्यम सदा तो फिर न डरना चाहिए।।


डर से कभी भी झूठ का मत साथ देना जान लो।

कोमल हृदय रख पर नहीं अन्याय सहना चाहिए।।


सब मार्ग निष्कंटक मिले ये क्यों किसी ने मान ली।

व्यवधान जो हो सामने तो धैर्य रखना चाहिए।


जब ज्ञान बढ़ता बाँटने से तो सदा ही बाँटना।

हाँ मूढ़ता के सामने बस मौन धरना चाहिए।


हर दिन सदा होता नहीं हैं एक सा यह मान लो।

दुख पीर छाया धूप है सम भाव रहना चाहिए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

17 comments:

  1. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२५-०७ -२०२२ ) को 'झूठी है पर सच दिखती है काया'(चर्चा-अंक ४५०१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
      सादर सस्नेह।

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  3. मूढ़ता के सामने चुप रहने में ही भलाई है सुंदर रचना

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    1. रचना के भावों को समर्थन हेतु हृदय से आभार आपका रंजू जी।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  4. Replies
    1. सस्नेह आभार आपका शालिनी जी।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  5. हर दिन सदा होता नहीं हैं एक सा यह मान लो।

    दुख पीर छाया धूप है सम भाव रहना चाहिए।।
    जी उम्दा प्रस्तुति आदरणीय ।

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  6. हर दिन सदा होता नहीं हैं एक सा यह मान लो।

    दुख पीर छाया धूप है सम भाव रहना चाहिए।। बहुत ही सराहनीय भाव और संदेश देती गीतिका ।

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    1. हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी।
      आपकी सराहना से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  7. वाह क्‍या बात कही कुसुम जी, जब ज्ञान बढ़ता बाँटने से तो सदा ही बाँटना।

    हाँ मूढ़ता के सामने बस मौन धरना चाहिए।...आनंद आ गया ...रामराम

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    1. स्नेह आभार आपका अलकनंदा जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      ऊर्जा से भरी टिप्पणी।
      सस्नेह।

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  8. आपकी लेखनी को नमन। ग़ज़ल के प्रारूप में प्रस्तुत इस रचना का शब्द-शब्द स्मरणीय भी है, अनुकरणीय भी है।

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    1. आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर आभार आपका।

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