गीतिका
संभावनाएं
शासक स्वछंदी हो वहाँ प्रतिकार करना चाहिए।
उद्देश्य अपना लोक हित तो सत्य कहना चाहिए।।
बाधा न कोई रोक पाए यह अभी प्रण ठान लो।
जन हित करें उद्यम सदा तो फिर न डरना चाहिए।।
डर से कभी भी झूठ का मत साथ देना जान लो।
कोमल हृदय रख पर नहीं अन्याय सहना चाहिए।।
सब मार्ग निष्कंटक मिले ये क्यों किसी ने मान ली।
व्यवधान जो हो सामने तो धैर्य रखना चाहिए।
जब ज्ञान बढ़ता बाँटने से तो सदा ही बाँटना।
हाँ मूढ़ता के सामने बस मौन धरना चाहिए।
हर दिन सदा होता नहीं हैं एक सा यह मान लो।
दुख पीर छाया धूप है सम भाव रहना चाहिए।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२५-०७ -२०२२ ) को 'झूठी है पर सच दिखती है काया'(चर्चा-अंक ४५०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
Deleteसादर सस्नेह।
मूढ़ता के सामने चुप रहने में ही भलाई है सुंदर रचना
ReplyDeleteरचना के भावों को समर्थन हेतु हृदय से आभार आपका रंजू जी।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
Nice
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका शालिनी जी।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
Nice
ReplyDeleteहर दिन सदा होता नहीं हैं एक सा यह मान लो।
ReplyDeleteदुख पीर छाया धूप है सम भाव रहना चाहिए।।
जी उम्दा प्रस्तुति आदरणीय ।
हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
सादर।
ReplyDeleteहर दिन सदा होता नहीं हैं एक सा यह मान लो।
दुख पीर छाया धूप है सम भाव रहना चाहिए।। बहुत ही सराहनीय भाव और संदेश देती गीतिका ।
हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी।
Deleteआपकी सराहना से लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
वाह क्या बात कही कुसुम जी, जब ज्ञान बढ़ता बाँटने से तो सदा ही बाँटना।
ReplyDeleteहाँ मूढ़ता के सामने बस मौन धरना चाहिए।...आनंद आ गया ...रामराम
स्नेह आभार आपका अलकनंदा जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteऊर्जा से भरी टिप्पणी।
सस्नेह।
आपकी लेखनी को नमन। ग़ज़ल के प्रारूप में प्रस्तुत इस रचना का शब्द-शब्द स्मरणीय भी है, अनुकरणीय भी है।
ReplyDeleteआपकी बहुमूल्य टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसादर आभार आपका।