फीकी ऋतुआ़ँ
आला लीला साँझ सकारा
कोर हिय के प्रीत जागे
पाहुनो घर आय रह्यो है
फागुनी सो रंग सागे।।
घणा दिना तक काग उडाया
बाँटां जोई है राताँ
छैल भँवर बिन किने सुनावा
मन री उथली सी बाताँ
जल्दी आजो जी आँगन में
जिवडो उडतो ओ भागे।।
छोड़ गया परदेश साजना
चेत नहीं म्हारी लीनी
अमावस की राताँ काली
सावन री बिरखा झीनी
कितरी ऋतुआ बीती फीकी
गाँठ बा़ँधता धागे-धागे।।
पिवसा सुनजो मन री मरजी
अब की चालूँ ली साथाँ
नहीं चाइजे रेशम शालू
ओढ़ रवाँ ला मैं काथाँ
सुनो मारुजी बिन थांँरे तो
मेलों भी सूनो लागे।।
आला-लीला=गीला,सीला
बाँटा जोई = राह निहारना
छैल भँवर=पति
शालू = सुंदर वस्त्र
काँथा = पुराने कपड़ों से सिले वस्त्र
पिवसा=प्रिय ,पति
मारुजी=पति।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(14-12-21) को "काशी"(चर्चा अंक428)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी हृदय से आभार आपका चर्चा में शामिल होना सदा ही सुखद और आत्म गौरव से भरपूर है।
Deleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
अति उत्तम राजस्थानी गीत सखि
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी,आपको पसंद आया लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
वाह!मन मोह गया आपका सृजन।
ReplyDeleteशब्द-शब्द मन को बिंधता।
बहुत ही सुंदर।
आपको राजस्थानी लोक गीत सृजन की मल्लिका हैं आपने पसंद किया लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह आभार।
वाह ! सुंदर सरस,सुकोमल सी कविता । मन के तार तार को छू गई । बहुत बहुत शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteऔर आपकी प्रतिक्रिया की झंकार से मन की वीणा झंकृत हो गई जिज्ञासा जी।
Deleteसस्नेह आभार स्नेह से लिप्त उद्गार।
बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteउत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सादर।
वाह बहुत मनमोहक गीत लिखा है।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
जी बहुत बहुत आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteजी सुंदर गीत , आदरणीय ।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
बेहतरीन रचना सखी।
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
हृदय से आभार आपका आदरणीय, चर्चा में शामिल होना सदा ही सुखद और आत्म गौरव से भरपूर है।
ReplyDeleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।