प्रतिबंधों से बाहर
आयु जिसमें दब गई है
वर्जना का बोझ भारी
हो स्वयं का ऐक्य निज से
नित हृदय चलती कटारी।।
आज तक तन ही सँवारा
डोर इक मनपर बँधी थी
पूज्य बनकर मान पाया
खूँट गौ बनकर बँधी थी
हौसले के दर खुलेंगे
राह सुलझेगी अगारी।।
भोर की उजली उजासी
इक झरोखा झाँकती है
तोड़ने तमसा अँधेरा
उर्मि यों को टाँकती है
सूर्य की आभा पनपती
आस की खिलती दुपारी।।
तोड़कर झाँबा उड़े मन
बंध ये माने कहाँ तक
पंख लेकर उड़ चला अब
व्योम खुल्ला है जहाँ तक
आ सके बस स्वच्छ झोंका
खोल देगी इक दुआरी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
स्वयं का ऐक्य=निज की पहचान
अगारी=आगे की
दुपारी=दुपहरी
झाँबा=पिंजरा या कैद
दुआरी=छोटा दरवाजा
मन के आकाश में उन्मुक्त विचरण करो कब तक बंधनों में बंधे रहोगे .....
ReplyDeleteसुंदर भावों से सुसज्जित रचना ।
हृदय से आभार संगीता जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सदा नये आयाम पाती है।
Deleteसार्थक भावों से समर्थन के लिए बहुत बहुत आभार।
सादर सस्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(३०-१२ -२०२१) को
'मंज़िल दर मंज़िल'( चर्चा अंक-४२९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका अनिता जी।
Deleteरचना को चर्चा में स्थान देने के लिए।
मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
प्रिय कुसुम !अति उत्तम सृजन👌👌
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका दी,आपके आने भर से आशीर्वाद पा जाती है रचना।
Deleteसादर सस्नेह।
आज तक तन ही सँवारा
ReplyDeleteडोर इक मनपर बँधी थी
पूज्य बनकर मान पाया
खूँट गौ बनकर बँधी थी
हौसले के दर खुलेंगे
राह सुलझेगी अगारी।।.. बिलकुल । मन की उड़ान भरते सुंदर भाव ।उत्कृष्ट रचना
सस्नेह आभार जिज्ञासा जी, आपकी रचना के भावों को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आलोक जी।
Deleteसादर।
आज तक तन ही सँवारा
ReplyDeleteडोर इक मनपर बँधी थी
पूज्य बनकर मान पाया
खूँट गौ बनकर बँधी थी
हौसले के दर खुलेंगे
राह सुलझेगी अगारी।।
बहुत ही सुन्दर सटीक एवं प्रेरक
लाजवाब नवगीत
वाह!!!
सुंदर समर्थन देते उद्गार सुधाजी! आपकी स्नेहिल उपस्थिति सदा मुझे नव उर्जा से परिपूर्ण करती हैं।
Deleteस्नेह आभार आपका।
सस्नेह।
तोड़कर झाँबा उड़े मन
ReplyDeleteबंध ये माने कहाँ तक
पंख लेकर उड़ चला अब
व्योम खुल्ला है जहाँ तक
आ सके बस स्वच्छ झोंका
खोल देगी इक दुआरी।।... वाह!गज़ब का लेखन होता है आपका सराहनीय।
नववर्ष की हार्दिक हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर नमस्कार
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना गतिमान हुई प्रिय अनिता।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
सस्नेह।