शीश चढ़ा कर उसको रखती
बड़े प्यार से उस सँग रहती
खरा कभी लगता वो खोटा
क्या सखि साजन? ना सखि गोटा।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
👩❤️👩
पेट दिखाता इतना मोटा
पर समझो मत मन का खोटा
नही कभी वो करता सौदा
क्या सखि साजन?ना सखि हौदा।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
👩❤️👩
दोनों बीच सदा ही पटपट
सभी बात पर होती खटपट
इसी बात से होता घाटा
सखि साजन?ना बेलन पाटा।।
कुसुम कोठारी ' प्रज्ञा '
👩❤️👩
ग्रास तोड़ कर मुझे खिलाता
पानी शरबत दूध पिलाता
करता काम सभी वो सर-सर
क्या सखी साजन? ना सखी कर।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
👩❤️👩
हाथ पाँव फैला कर सोता
चूक गया तो बाजी खोता
जीत सदा उसकी वो नौसर
क्या सखि साजन? ना सखि चौसर।।
( नौसर =चतुर या चतुराई )
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
👩❤️💋👩👩❤️👨👩❤️💋👩
वाह!बहुत बहुत ही बढ़िया 👌
ReplyDeleteआपका जवाब नहीं दी।
सादर प्रणाम
ढेर सा आभार प्रिय अनिता आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन को नई उर्जा मिली।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर भाव भरी ।
ReplyDeleteआपकी हर कहमुकारी ।।
😀😀😀😀😀😀😀
ढ़ेर सारा आभार जिज्ञासा जी, आपकी शरारती मुस्कान ही रचना का प्रतिदान है ।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार सखी।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
विनोदपूर्ण कहमुकरियां !
ReplyDeleteसादर आभार आपका, आगे के लिए तैयार रहिएगा सौ लिख रही हूँ। आप सब की विवेचना और विशेष समालोचना चाहिए ।
Deleteसादर।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-10-2021) को चर्चा मंच "शरदपूर्णिमा पर्व" (चर्चा अंक-4223) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
चर्चा में शामिल होना सदा सुखद अनुभव है।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार शुभा जी आपकी प्रतिक्रिया से मन खुश हुआ।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार आपका मनोज जी।
Deleteसादर।
कह मुकरी .....साहिलियों में पहेलियों खूबसूरत याद दिलादी आमिर खुसरो साहब की बेहतरीन अंदाज़ है आपके ब्लॉग के। साझा करने के लिए आभार।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ,जी यह अमीर खुसरो साहब की लुप्त प्रायः विधा है।इसपर लिखना एक चुनौती रहा।
Deleteशतक पूरा होने को है, फिर आप सभी का आशीर्वाद चहिएगा।
सादर।
वाह सखि बहुत सुंदर
ReplyDeleteसखी ढेर सा आभार अभी तो पांच ही है सखी शतक को अग्रसर है लेखनी।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर मुकरियाँ...
ReplyDeleteजी सर बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसादर।
कुछ विधाएं हमारी धरोहर हैं, उन्हें बचाना, संवारना बहुत जरुरी है ! साधुवाद
ReplyDeleteजी गगन जी ये लुप्त होती विधाओं सचमुच हमारी धरोहर है।
Deleteऔर हमारे गुरुदेव श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी सदा इसी तरह के प्रयासों में लगे रहते हैं मंच से जुड़े साथियों की प्रेरणा बन, सदा साहित्य की इस धरोहर को संवारने और उन्नत करने में लगे हैं,इसी प्रयास में हम लोगों ने छंदों के अलग अलग विधाओं पर आठ नौ शतक पूरे कर लिए ।
आगे भी यह यात्रा निर्बाध चलती रहेगी उनकी प्रतिबद्धता से ।
साथ ही आप सब जैसा पाठक वर्ग हमें मिलता है तो उर्जा और उत्साह दोनों बढ़ते हैं।
सादर।
बहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteमैं अवश्य ब्लॉग पर आऊंगी
सादर।