दुल्हन का रूप
झुमर झनकार, कंगन खनका
जब राग मिला मन से मन का,
मोती डोला, बोली माला बल खाके ,
अब सजन घर जाना गोरी शरमा के ,
चमकी बिंदिया ,खनकी पायल
पिया का दिल हुवा अब घायल ,
नयनों की यह "काजल "रेखा
मुड़-मुड़ झुकी नजर से देखा ,
नाक की नथनी डोली ,
मन की खिडकी खोली,
ओढ़ी चुनरिया धानी-लाल
बदल गई दुल्हन की चाल,
कैसा समय होता शादी का
रूप निखरता हर बाला का ।
कुसुम कोठारी ।
झुमर झनकार, कंगन खनका
जब राग मिला मन से मन का,
मोती डोला, बोली माला बल खाके ,
अब सजन घर जाना गोरी शरमा के ,
चमकी बिंदिया ,खनकी पायल
पिया का दिल हुवा अब घायल ,
नयनों की यह "काजल "रेखा
मुड़-मुड़ झुकी नजर से देखा ,
नाक की नथनी डोली ,
मन की खिडकी खोली,
ओढ़ी चुनरिया धानी-लाल
बदल गई दुल्हन की चाल,
कैसा समय होता शादी का
रूप निखरता हर बाला का ।
कुसुम कोठारी ।
झुमर झनकार, कंगन खनका
ReplyDeleteजब राग मिला मन से मन का,
मोती डोला, बोली माला बल खाके ,
अब सजन घर जाना गोरी शरमा के , बहुत ही प्यारी रचना
प्रिय सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह आभार।
ओढ़ी चुनरिया धानी-लाल
ReplyDeleteबदल गई दुल्हन की चाल,
कैसा समय होता शादी का
रूप निखरता हर बाला का ।
जी दी
मन से मन का राग ही दाम्पत्य जीवन का सुख है।
वाह भाई! आपको स्वास्थ्य लाभ कर सक्रिय देख बहुत खुशी हुई ।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया पा रचना सार्थक हुई।
सस्नेह आभार।
आपकी शब्द संपदा तो चकित कर देती है | बहुत कुछ सीखना चाहिए आपसे | शानदार
ReplyDeleteआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से रचना और मैं दोनों अभिभूत हुए ।
Deleteअजय कुमार जी आपका में हृदय तल से आभार करती हूं।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत प्यारी बात कही आपने प्रिय कुसुम बहन | कैसा समय होता शादी का -- रूप निखरता हर बाला का | सचमुच बड़ा अलबेला समय होता है और बड़ा ही आशंकित कर देने वाला भी , पर लाड चाव में इसकी खबर किसे होती है | भावपूर्ण रचना के शुभकामनायें |
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह रेणु बहन ।
ReplyDeleteआपकी प्यारी सी प्रतिक्रिया का सदैव इंतजार रहता है। हां आशंकित रहता है मन पर अब तो सभी कुछ मनचाहा होता है,बच्चे समझदार होते हैं तो आशंका बस क्षणिक सी होती है ,या फिर मन में पहले से ही स्थापित कोई शंका या भाव ।
सदा स्नेह की आकांक्षी।
वाह आदरणीया दीदी जी क्या खूब वर्णन किया है आपने दुल्हन का
ReplyDeleteवैसे तो हमे इस विषय से दूरी ही पसंद है हमे पर फिर भी आपकी पंक्तियाँ मन को भा गई। आप लिखती ही इतना सुंदर हैं
सादर नमन
मन के कोमल भाव स्वतः ही जागृत हो उठते हैं जब दुल्हन होने का एहसास मन में आता है ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है ...
मोती डोला, बोली माला बल खाके ,
ReplyDeleteअब सजन घर जाना गोरी शरमा के , बहुत ही प्यारी रचना
वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
ReplyDeletehttp://sanjaybhaskar.blogspot.com
नई रचना .......वक़्त के तेज गुजरते लम्हों में :)
बेहद खूबसूरत अहसासों का चित्रण 👌👌
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