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Monday, 19 August 2019

नदियों का तांडव

नदियों का तांडव

प्नलयंकारी न बन
हे जीवन दायिनी,
विनाशिनी न बन
हे सिरजनहारिनी,
कुछ तो दया दिखा
हे जगत पालिनी,
गांव के गांव
तेरे तांडव से
नेस्तनाबूद हो रहे,
मासूम जीवन
जल समाधिस्थ हो रहे,
निरीह पशु लाचार
बेबस बह रहे,
निर्माण विनाश में
तब्दील हो रहा,
मानवता का संहार देख
पत्थर दिल भी रो रहा,
कहां है वो गिरीधर
जो इंद्र से ठान ले ?
जल मग्न होगी धरा
पुराणों मे वर्णित है!
क्या ये उसका प्राभ्यास है ?
हे दाता दया कर
रोक ले इस विनाश को,
सुन कर विध्वंस को
आतुर दिल रो रहा।

       कुसुम कोठारी।

14 comments:

  1. मार्मिक प्रस्तुति

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    1. बहुत सा आभार रीतु जी ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मंगलवार 20 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सांध्य दैनिक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

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  3. मार्मिक प्रस्तुति दी जी
    सादर

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  4. हाय अजीर्णता नदियों की
    प्रकृति का निर्मम अट्टहास
    सत्य का अनावरण करती बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत सा आभार श्वेता आपकी सार्थक प्रतिक्रिया सदा उत्साह वर्धन करती है।
      सस्नेह।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 21अगस्त 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार पम्मी जी मेरी रचना को पांच लिंको के लिए चुनने हेतु।
      सस्नेह।

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  6. बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी

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    Replies
    1. बहुत सा आभार सखी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए।
      सस्नेह।

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  7. निर्माण विनाश में
    तब्दील हो रहा,
    मानवता का संहार देख
    पत्थर दिल भी रो रहा,
    बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन
    वाह!!!

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  8. जलप्रलय से आहत मन के करुण उदगार-- जीवन दायिनी धारा के नाम प्रिय कुसुम बहन | सचमुच जब ये जीवनदायिनी जलधाराएँ प्रलयकारी रूप में आती हैं तो इनका रौद्र रूप मानव मात्र के लिए बहुत भयावह होता है | ईश्वर इनका ये रूप कभी किसी को ना दिखाए | सार्थक रचना के लिए मेरी शुभकामनायें | सस्नेह

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