. रश्मियों की कलम से
एक नव प्रभात रच दूं,
खोल कर अंतर झरोखा
सूरज को स्वाधीन कर दूं ।
रजनी की निरवता में
मधुर स्वर मुखर कर दूं ,
सुधा चांदनी की कलम से
उद्धाम अंधकार हर दूं।
श्वास-श्वास पावन ऋचाएं
हर कलम संगीत भर दूं,
मन वीणा मधुर बज मेरी
विश्व को सरगम मैं कर दूं।
कर सरस काव्य सृजन
हे व्याकुल मन मेरे रसी तूं,
मन के कोमल भाव उकेरूं
कलम से बस कविता रच दूं।
कुसुम कोठारी।
एक नव प्रभात रच दूं,
खोल कर अंतर झरोखा
सूरज को स्वाधीन कर दूं ।
रजनी की निरवता में
मधुर स्वर मुखर कर दूं ,
सुधा चांदनी की कलम से
उद्धाम अंधकार हर दूं।
श्वास-श्वास पावन ऋचाएं
हर कलम संगीत भर दूं,
मन वीणा मधुर बज मेरी
विश्व को सरगम मैं कर दूं।
कर सरस काव्य सृजन
हे व्याकुल मन मेरे रसी तूं,
मन के कोमल भाव उकेरूं
कलम से बस कविता रच दूं।
कुसुम कोठारी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-08-2019) को "हरेला का त्यौहार" (चर्चा अंक- 3416) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सा सरनेम आभार आपका।
Deleteचर्चा अंक में मेरी रचना को देखना मेरे लिए सुखद अनुभव।
कलम और कलमकार की जादूगरी से शब्द शब्द मुखरित हो अपना आलोक बिखेर रहा है ।अति उत्तम सृजनात्मकता कुसुम जी ।
ReplyDeleteप्रिय मीना जी सस्नेह आभार आपका।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया सदा मेरा उत्साह बढ़ाती है और बांधे रखती है ।
सच अंतर हृदय से आभार।
बेहद खूबसूरत रचना सखी
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteआपके अतुल्य स्नेह के लिए आभार सखी ।
Deleteसस्नेह।
इतनी सुदर कविता ... वाह कुसुम जी मन कर रहा है एक नव प्रभात रच दूं
ReplyDeleteकलम का कमाल ... भोर की रश्मि या रजनी का प्रभाव कलम के साथ कुछ भी करवा ले जाता है ... बहुत ही लाजवाब ...
ReplyDeleteश्वास-श्वास पावन ऋचाएं
ReplyDeleteहर कलम संगीत भर दूं,
मन वीणा मधुर बज मेरी
विश्व को सरगम मैं कर दूं।
कमाल की रचना प्रिय कुसुम बहन लोककल्याण के अप्रितम भावों से भरी मनमोहक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें | सस्नेह --
सूरज को स्वाधीन कर दूं ।
ReplyDeleteकलम से बस कविता रच दूं।
khoobsurat....
bahut hi achii kavitaa
aabhar achhaa lekhan hume pdhaane ke liye