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Saturday, 24 August 2019

विश्वेश्वर

.               " विश्वेश्वर"

वो है निर्लिप्त निरंकार वो प्रीत क्या जाने
ना राधा ना मीरा बस " रमा " रंग है राचे,
आया था धरा को असुरो से देने मुक्ति,
आया था आते कलियुग की देने चेतावनी,
आया था देने कृष्ण बन गीता का वो ज्ञान,
आया था  समझाने कर्म की  महत्ता,
आया था त्रेता के कुछ वचन करने पुरे,
आया जन्म लेकर कोख से ,         
इसलिये रचाई बाल लीलाऐं नयनाभिराम ,
सांसारी बन आया तो रहा भी
बन मानव की दुर्बताओं के साथ,
वही सलौना बालपन ,वही ईर्ष्या,
वही मैत्री ,वही शत्रुता ,वही मोह
वही माया वही भोग वही लिप्सा ,अभिलाषा ,
वही बदलती मनोवृति,
जो कि है मानव के नैसर्गिक गुण ।
वो आया था जगाने स्वाभिमान ,
सिखाने निज अस्तित्व हित संघर्ष करना,
मनुष्य सब कुछ करने में है सक्षम ,
ये बताने आया प्रत्यक्ष मानव बन ।
नही तो बैठ बैकुंठ में सब साध लेता,
क्यों आता अजन्मा इस धरा पर ,
हमे समझाने आया कि सब कुछ
तू कर सकता ,नही तू नारायण से कम,
बस मार्ग भटक के तू खोता निज गरिमा,
भूला अंहकार वश तूं बजरंगी सा
अपनी सारी पावन शक्तियां । 
                                         
            कुसुम कोठारी।

18 comments:

  1. वो आया था जगाने स्वाभिमान ,
    सिखाने निज अस्तित्व हित संघर्ष करना,
    मनुष्य सब कुछ करने में है सक्षम ,
    ये बताने आया प्रत्यक्ष मानव बन ।
    नही तो बैठ बैकुंठ में सब साध लेता,
    क्यों आता अजन्मा इस धरा पर , बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी

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    1. प्रिय सखी आपकी प्रतिक्रिया से मन को संतोष मिला ।
      सस्नेह आभार बहुत सा।

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  2. साभार शिवम् जी।
    मेरे लिए यह हर्ष और सौभाग्य की बात है।
    पुरी ब्लाग बुलेटिन टीम को जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
    सादर।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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    1. अभिभूत हूं मैं !अपने ब्लाग पर आपका स्वागत है कविता जी
      सादर आभार।

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  4. बहुत सुन्दर और लाजवाब सृजन कुसुम जी ..भगवान कृष्ण के जन्मदिन के सुअवसर पर ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना सी सुकून देती आपकी उपस्थिति।
      सस्नेह।

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तूति, कुसुम दी।

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    1. बहुत सा स्नेह आभार ज्योति बहन आपका ।

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  6. वाह वाह शब्दों का चयन संयोजन व् शैली बहुत ही प्रभावित करने वाली | आपका अनुसरक बन गया हूँ ताकि अब नियमित आपको पढता रहूं | शुक्रिया

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    1. अजय कुमार जी आपका ब्लाग पर सहर्ष स्वागत ।
      आपकी सुरूचिपूर्ण प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला और मुझे उत्साह।
      सदा सहयोग बना रखें ।
      सादर।

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  7. ohhhhhh

    bhasha shaili ki aapki pakadh kaabil e tareef...bahut hi sashak rchnaa
    bdhaayi

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    1. ज़ोया जी तहे दिल से शुक्रिया आपका स्नेह बनाए रहे ।
      सस्नेह।

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  8. सुन्दर प्रस्तुति उस देवाधिदेव सकल चराचर के स्वामी की महिमा का आदि न अंत

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  9. योगी राज ने अपने योग से प्रतक्ष सबके बीच आ कर्म का सिद्धांत दिया ... अपने आचरण को शुद्ध करके जीवन जीने का राह सुझाया ...
    जय जय श्री कृष्ण राधे ...

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  10. श्री कृष्णजन्माष्टमी पर आपने अजन्मे का ज‍िसतरह स्वागत क‍िया है कुसुम जी, अद्भुत है... हमे समझाने आया कि सब कुछ
    तू कर सकता ,नही तू नारायण से कम,
    बस मार्ग भटक के तू खोता निज गरिमा,
    भूला अंहकार वश तूं बजरंगी सा
    अपनी सारी पावन शक्तियां ।...वाह

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  11. बहुत प्यारी और कृष्ण भगवन के प्रति अनन्य अनुराग भावों से सुसज्जित रचना प्रिय कुसुम बहन | सचमुच अजन्मा रहकर ईश्वर कब कोई लीला कर पाने में सक्षम होता | उसके लिए मानव रूप में अवतार की आवश्यकता तो होनी ही थी | श्री कृष्ण युग नायक बनने के योग्य हुए वह बाल लीला से लकर महाभारत तक की लीलाओं का ही परिणाम था | सचमुच उनकी लीला किसी भी वर्णन से परे है | अध्यात्म के रंग रंगी सुंदर , सुबोध रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें और बधाई |

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  12. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11 -8 -2020 ) को "कृष्ण तुम पर क्या लिखूं!" (चर्चा अंक 3790) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा


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