सावन अब कैसा सावन
वारिध ने अपनी चाल ही बदल़ दी
ना वो लयबद्ध झड़ी बादलों की
ना वो बहारें,
ना वो मिट्टी की
भीनी सौंधी खुशबू
ना वो सावन के झूले
ना वो गीत लहरी
ना वो ठिठोलियां
ना ही आत्मा तक
पहुँचने वाली
कोयल की कुहुक
ना पपीहे का राग
ना जाने हम रसहीन हो गये
या समय ने सावन
ही बेरंगा कर डाला ।
कुसुम कोठारी ।
वारिध ने अपनी चाल ही बदल़ दी
ना वो लयबद्ध झड़ी बादलों की
ना वो बहारें,
ना वो मिट्टी की
भीनी सौंधी खुशबू
ना वो सावन के झूले
ना वो गीत लहरी
ना वो ठिठोलियां
ना ही आत्मा तक
पहुँचने वाली
कोयल की कुहुक
ना पपीहे का राग
ना जाने हम रसहीन हो गये
या समय ने सावन
ही बेरंगा कर डाला ।
कुसुम कोठारी ।
धान की रुपाई शुरू हो जाए,
ReplyDeleteआसमान में काले बादल मंडराने लगे
समझो की सावन आ गया !
अब के सावन ऐसा आए
पहले ये सब होता था ये स्वान के आने के संकेत होते थे
बहुत बहुत शुक्रिया आपका उत्साह वर्धन के लिये ।सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया ।
Deleteसुंदर और सार्थक रचना सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी ।
Deleteगहरी रचना ...
ReplyDeleteआज सावन का आना भी अलग सा हो गया है ...
बहुत बहुत आभार आपका सराहना के लिए।
Deleteयथार्थ का मार्मिक चित्रण प्रिय दी जी
ReplyDeleteसादर
ढेर सा स्नेह आभार बहना ।
Deleteसही कहा अब कहाँ सावन....कहाँ रिमझिम फुहारें ...अब तो कहीं बाढ़ कहीं सूखा....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ढेर सा स्नेह सुधा जी सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली।
Deleteसस्नेह