Monday, 15 July 2019

सावन अब कैसा सावन

सावन अब कैसा सावन
वारिध ने अपनी चाल ही बदल़ दी
ना वो लयबद्ध झड़ी बादलों की
ना वो बहारें,
ना वो मिट्टी की
भीनी सौंधी खुशबू
ना वो सावन के झूले
ना वो गीत लहरी
ना वो ठिठोलियां
ना ही आत्मा तक
पहुँचने वाली
कोयल की कुहुक
ना पपीहे का राग
ना जाने हम रसहीन हो गये
या समय ने सावन
ही बेरंगा कर डाला ।

      कुसुम कोठारी ।

10 comments:

  1. धान की रुपाई शुरू हो जाए,
    आसमान में काले बादल मंडराने लगे
    समझो की सावन आ गया !
    अब के सावन ऐसा आए
    पहले ये सब होता था ये स्वान के आने के संकेत होते थे

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका उत्साह वर्धन के लिये ।सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया ।

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  2. सुंदर और सार्थक रचना सखी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी ।

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  3. गहरी रचना ...
    आज सावन का आना भी अलग सा हो गया है ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सराहना के लिए।

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  4. यथार्थ का मार्मिक चित्रण प्रिय दी जी
    सादर

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    1. ढेर सा स्नेह आभार बहना ।

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  5. सही कहा अब कहाँ सावन....कहाँ रिमझिम फुहारें ...अब तो कहीं बाढ़ कहीं सूखा....
    बहुत सुन्दर रचना...

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    1. ढेर सा स्नेह सुधा जी सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली।
      सस्नेह

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